मैं राजीव ध्यानी, साकिन मोहल्ला इंदिरा नगर, तहसील ओ ज़िला लखनऊ, सूबा-
उत्तर प्रदेश अपने ईमान और मुल्क के आईन (संविधान) को हाज़िर-नाज़िर मानकर
फेसबुक के दोस्तों की मौजूदगी में इस बात की हलफ लेता हूँ कि इस बार के
इन्तेखाबात (चुनाव) में मैं अपना वोट ज़ाया नहीं होने दूंगा.
मुझे मालूम है कि मेरा वोट ऐसे उम्मीदवार को जा रहा है, जिसके जीतने के रत्ती भर इमकानात नहीं हैं. यह उम्मीदवार मेरी ही तरह एक आम शहरी है; चुनाव के लिए अखबार में दो पेज का इश्तिहार देने की उसकी हैसियत नहीं है.
ये न अपनी जात पर वोट मांग रहा है, न मज़हब पर. इसके कुरते की जेब राहुल जी से ज़्यादा फटी हुई है ( और यह इसने खुद नहीं फाड़ी, न ही यह इसकी नुमाइश करता है). इसकी साइकिल नेता जी की साइकिल (जिस पर अखिलेश जी ने नया रंग करवा रखा है) से ज्यादा पुरानी है. इसने या इसकी बीवी ने बहन जी की तरह हाथ में पर्स लेकर जीते जी अपना कोई बुत नहीं बनवाया है. इसने कभी किसी दंगे या पंगे में शिरक़त नहीं की है. इसकी दाढी और कुर्ता मोदी जी से ज्यादा उजले और बेदाग़ है.
इसका किसी बाहरी मुल्क में बैंक खाता नहीं है. इसके या इसके बाप- दादों पर तोप दलाली में पैसा खाने, आमदनी से ज्यादा दौलत रखने, चुनाव में टिकट बेचने या दंगे के दौरान आँखों पर पट्टी बाँध लेने का कोई इल्जाम नहीं लगा.
यह किसी कुनबे की चौथी पीढी में पैदा होने से ही नेता नहीं बन गया है. न ही इसने कुर्सी के लिए बाप (या बाप सरीखे उस्तादों) को लात मारकर किनारे किया है. और न ही दूसरे शागिर्दों को दफा कर उस्ताद की बनाई पार्टी पर ज़बरन कब्ज़ा किया है.
यह जीतने के लिए आपको किसी का डर नहीं दिखाता. न गेरुए झंडे वालों का, न दाढ़ी-टोपी वालों का, न रिज़र्वेशन ख़त्म हो जाने का.
अगर ये जीत जाता तो मेरी और आपकी गाढ़ी कमाई से मुफ्त में कुकर, कम्प्यूटर और वाई-फाई की रेवड़ियां न बांटता, बल्कि रोज़गार और कमाई बढाने पर जोर देता. सूबे में अमन, हिफाज़त और तरक्की क़ायम करने की कोशिश करता.
दोस्तों, मेरे इस उम्मीदवार को कुल जमा एकाध हज़ार वोट भी मिल जाएं, तो ग़नीमत होगी. लेकिन अपने ईमान के वास्ते - इसे खोजिए और वोट दीजिये.
ये तो शर्तिया हार जाएगा, लेकिन इसे वोट देकर हम और आप ज़रूर जीत जाएंगे. उम्मीद है, आपके ईमान का रंग आपकी पसंदीदा पार्टी के झंडे के रंग से ज्यादा चटख साबित होगा.
आमीन!
(लिख दिया ताकि सनद रहे , और आने वाली पीढ़ियों के सामने बताया जा सके कि उनके सभी पुरखे किसी से डरे हुए और किसी एक तरफ झुके हुए नहीं थे)
मुझे मालूम है कि मेरा वोट ऐसे उम्मीदवार को जा रहा है, जिसके जीतने के रत्ती भर इमकानात नहीं हैं. यह उम्मीदवार मेरी ही तरह एक आम शहरी है; चुनाव के लिए अखबार में दो पेज का इश्तिहार देने की उसकी हैसियत नहीं है.
ये न अपनी जात पर वोट मांग रहा है, न मज़हब पर. इसके कुरते की जेब राहुल जी से ज़्यादा फटी हुई है ( और यह इसने खुद नहीं फाड़ी, न ही यह इसकी नुमाइश करता है). इसकी साइकिल नेता जी की साइकिल (जिस पर अखिलेश जी ने नया रंग करवा रखा है) से ज्यादा पुरानी है. इसने या इसकी बीवी ने बहन जी की तरह हाथ में पर्स लेकर जीते जी अपना कोई बुत नहीं बनवाया है. इसने कभी किसी दंगे या पंगे में शिरक़त नहीं की है. इसकी दाढी और कुर्ता मोदी जी से ज्यादा उजले और बेदाग़ है.
इसका किसी बाहरी मुल्क में बैंक खाता नहीं है. इसके या इसके बाप- दादों पर तोप दलाली में पैसा खाने, आमदनी से ज्यादा दौलत रखने, चुनाव में टिकट बेचने या दंगे के दौरान आँखों पर पट्टी बाँध लेने का कोई इल्जाम नहीं लगा.
यह किसी कुनबे की चौथी पीढी में पैदा होने से ही नेता नहीं बन गया है. न ही इसने कुर्सी के लिए बाप (या बाप सरीखे उस्तादों) को लात मारकर किनारे किया है. और न ही दूसरे शागिर्दों को दफा कर उस्ताद की बनाई पार्टी पर ज़बरन कब्ज़ा किया है.
यह जीतने के लिए आपको किसी का डर नहीं दिखाता. न गेरुए झंडे वालों का, न दाढ़ी-टोपी वालों का, न रिज़र्वेशन ख़त्म हो जाने का.
अगर ये जीत जाता तो मेरी और आपकी गाढ़ी कमाई से मुफ्त में कुकर, कम्प्यूटर और वाई-फाई की रेवड़ियां न बांटता, बल्कि रोज़गार और कमाई बढाने पर जोर देता. सूबे में अमन, हिफाज़त और तरक्की क़ायम करने की कोशिश करता.
दोस्तों, मेरे इस उम्मीदवार को कुल जमा एकाध हज़ार वोट भी मिल जाएं, तो ग़नीमत होगी. लेकिन अपने ईमान के वास्ते - इसे खोजिए और वोट दीजिये.
ये तो शर्तिया हार जाएगा, लेकिन इसे वोट देकर हम और आप ज़रूर जीत जाएंगे. उम्मीद है, आपके ईमान का रंग आपकी पसंदीदा पार्टी के झंडे के रंग से ज्यादा चटख साबित होगा.
आमीन!
(लिख दिया ताकि सनद रहे , और आने वाली पीढ़ियों के सामने बताया जा सके कि उनके सभी पुरखे किसी से डरे हुए और किसी एक तरफ झुके हुए नहीं थे)
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