'अबे लखनऊ के खानसामे मर गए हैं क्या, जो मुरादाबाद वाले हमें बिरयानी
खिलाएंगे. हैदराबाद तक तो फिर भी गनीमत थी, ये मुरादाबाद वाले कब से
बिरयानी खाने- पकाने लगे? अमां, बिरयानी सिर्फ खाने की चीज़ है? इसके साथ
हज़ार तरह के अदाबो- आदाब, नफासतऔर सलीक़े जुड़े हैं. अब ये मुरादाबाद वालों
का सलीके से क्या वास्ता?.........कहेंगे.......सलीका वलीका रैनदे ताऊ.
देख क्या रिया ए. धोरे में खडा तो हो मती. प्लेट उठा के निकल्ले साइड कू.
गाहक आन दे. नुक्सान हो रिया ए......... अब तो उठा ले मौला. आरिया जारिया
करने वाले मुरादाबादी हम लखनउओं को बिरयानी खिलाएंगे? ज़हर न खा लें!
हसन अब्बास चचा बेहद नाराज़ हैं. असल में बड़ी - बड़ी पीतल की हांडियां चमकाते हुए मुरादाबाद वालोंने लखनऊ के खानसामों की ऎसी- तैसी कर दी है. लखनऊ के हर कोने में मुरादाबादी चिकन बिरयानी की दुकानें सज गई हैं. मानों पूरा मुरादाबाद लखनऊ आ बसा हो. देखा-देखी अभी परसों हसनगंज मोहल्ले का अल्लन भी मुरादाबादी बिरयानी का बोर्ड टांगने जा रहा था. अब्बास चच्चा ने जूता निकाल लिया. 'कमबख्त..नामुराद....अबे कम से कम पुराने शहर को तो बख्श दो'
लखनऊ के इतिहास के सबसे बड़े जानकार Yogesh Praveen साहब ही शायद ये बता पाएं कि तारीख़ में शहर- ए- लखनऊ, उसके खाने और खानसामों की ऎसी फजीहत पहले कब हुई थी.
हसन अब्बास चचा बेहद नाराज़ हैं. असल में बड़ी - बड़ी पीतल की हांडियां चमकाते हुए मुरादाबाद वालोंने लखनऊ के खानसामों की ऎसी- तैसी कर दी है. लखनऊ के हर कोने में मुरादाबादी चिकन बिरयानी की दुकानें सज गई हैं. मानों पूरा मुरादाबाद लखनऊ आ बसा हो. देखा-देखी अभी परसों हसनगंज मोहल्ले का अल्लन भी मुरादाबादी बिरयानी का बोर्ड टांगने जा रहा था. अब्बास चच्चा ने जूता निकाल लिया. 'कमबख्त..नामुराद....अबे कम से कम पुराने शहर को तो बख्श दो'
लखनऊ के इतिहास के सबसे बड़े जानकार Yogesh Praveen साहब ही शायद ये बता पाएं कि तारीख़ में शहर- ए- लखनऊ, उसके खाने और खानसामों की ऎसी फजीहत पहले कब हुई थी.
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