समझ में न आए तो चिंता न कीजिए, ऐसा कइयों के साथ होता है..नथिंग टु वरी........
सिर्फ यात्रा ही हम तीनों ने साथ-साथ शुरू की थी. इसके बाद तो वो दोनों तेज़ चलते हुए मुझसे बहुत आगे निकल गए. बहुत बाद में पता चला कि दोनों बहुत जल्द ही यात्रा से हट गए थे. पहला हर मोड़ पर दाहिने घूम जाता था, जबकि दूसरा हर चौराहे से बाएँ ही मुड़ना चाहता था. हर बार दाहिने घूम कर पहला वापस वही पहुँच गया, जहाँ से चला था. पहुंचकर उसे पता चला कि पहला वाला भी लगातार बाएँ घूमकर पहले ही वहाँ पहुँच गया है.
मैं बहुत तेज़ तो नहीं चला. लेकिन जितना भी चला.....सीधे ही चला. गनीमत कि मैं उनसे बहुत पीछे था, वरना शायद उनमें से कोई मुझे भी साथ ले लेता.
एक संघी था, दूसरा सोवियत संघी.
सीख: अगर आप लगातार दाहिने या बाएँ घुमते रहेंगे, तो फिर से वहीं पहुँच जायेंगे, जहाँ से चले थे, या फिर उससे भी कहीं पीछे. इसलिए सीधे चलिए. संभलकर चलिए..
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