25 अगस्त को म्यांमार में जब सेना द्वारा बड़े पैमाने पर नरसंहार और आगज़नी शुरू हुई तो बहुत तेज़ी के साथ लोग जितना हाथ में आया, उसे समेटकर बांग्लादेश सीमा की ओर भागे. नाफ नाम की एक बड़ी नदी काफी बड़े इलाके में म्यांमार और बांग्लादेश की सरहद बनाती है. बहुत से रोहिंग्याओं के लिए इसे पार कर के बांग्लादेश की सीमा में घुसना ही सबसे सरल रास्ता था. नाफ के अलावा भी उन्हें रास्ते में कई छोटी- बड़ी नदियों, जलधाराओं, समुद्र के बैक-वाटर्स और बरसात के पानी से जूझना था. कहीं - कही नाविकों ने भाड़े के लालच में ज्यादा लोगों को भर लिया, और पूरी नाव ही नाफ नदी या समुद्र में डूब गईं. अब भी हर दूसरे- तीसरे दिन नावों के डूब जाने से लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं.
ये नावें भी बड़ी नदियों को पार करने के लिए ही थीं, छोटे नदी- नालों और बरसात के पानी से भरे जंगली रास्तों को बिना नाव के ही तय करना था. बच्चे- बूढ़े और बीमार लोगों को घरवाले जैसे- तैसे लाद- फांद कर लाए. इनमें से कुछ बीच में ही दम तोड़ बैठे,उनकी कब्रें वहीं बनीं, और रास्ता आगे बढ़ता गया.
देखते ही देखते हज़ारों की संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश की सीमा पर इकठ्ठा हो गए. शुरू में कुछ दिन तक बांग्लादेश सरकार को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. सीमा पर इकठ्ठा रोहिंग्या लोगों को रोकने में बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड्स को दिक्कत आने लगी थी. उधर सीमा पर रोहिंग्याओं की संख्या बढ़ रही थी, इधर बांग्लादेश के भीतर जनता और मीडिया ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय व स्थानीय एन जी ओ ने भी लगातार जोर लगाया. तब कहीं जाकर यह ऐलान हुआ कि बांग्लादेश रोहिंग्या लोगों को शरण देगा.
25 अगस्त को शुरू हुए नरसंहार के करीब करीब बीस दिन बाद कुटुपलांग शरणार्थी कैंप पहुंचकर भरी आँखों से प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने ऐलान किया कि अगर बांग्लादेश अपने 16 करोड़ नागरिकों के लिए अनाज जुटा सकता है तो है, तो इन 7-8 लाख लोगों का पेट भी भरेगा. इस मौके पर शेख हसीना के साथ उनकी बहंन शेख रेहाना भी थीं. जब शेख हसीना यह कह रही थीं, तब शायद दोनों बहनों की आँखों के सामने बयालीस साल पहले की वह रात ज़रूर रही होगी, जब उन्हीं की सेना के कुछ लोगों ने उनके पिता (बांग्लादेश के राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान), माँ, तीन छोटे भाइयों समेत संयुक्त परिवार के बीसेक लोगोंकी हत्या कर दी थे. इनमें उनका 10 साल का सबसे छोटा भाई शेख रासेल भी शामिल था. दोनों बहनें उस समय बांग्लादेश के बाहर थीं, इसलिए बच गईं. इसके बाद करीब छः साल तक दोनों बहनों को भारत और यूरोप में निर्वासित जीवन बिताना पडा था.
बहरहाल, बांग्लादेश ने जैसे ही अपनी सीमाएं खोलीं, शरणार्थियों का तांता लग गया. जब मैं इन शिविरों तक पहुंचा, तब तक करीब पौने छः लाख रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में आ चुके थे. अभी दो दिन पहले बांग्लादेश सरकार और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं ने जब ताज़ा आंकड़े जारी किये तो यह संख्या सवा छः लाख के आसपास पहुँच चुकी है. इसमें अस्सी के दशक से लेकर इस साल 25 अगस्त के बीच बांग्लादेश आए दो लाख शरणार्थी शामिल नहीं हैं. उन्हें जोड़कर तो सरकारी आंकडा आठ लाख और गैर सरकारी अनुमान नौ लाख के ऊपर पहुँच चुका है.
खैर, 12- 13 सितम्बर को, जब शेख हसीना रोहिंग्या शिविरों को देखने पहुंची तो उन्हें देखते ही बालुखाली-कुटुपलांग के शिविरों में एक साथ सैकड़ों महिलाओं के आर्त्रनाद गूँज उठे. जब माँओं ने बिलखते हुए बताना शुरू किया कि किस तरह उनकी गोद से छीनकर बच्चों को आग में झोंक दिया गया तब वहाँ मौजूद फौज के जवानों तक को रुलाई आ गई. शेख हसीना की आँखों से आंसू छलक पड़े जब एक महिला ने शेख हसीना को बताया कि कैसे म्यांमार के फौजियों और स्थानीय लोगों ने उसके अलावा लगभग तीस अन्य महिलाओं और लड़कियों को घरों से खींचकर एक जगह पर इकठ्ठा किया, और उनके साथ बर्बरता से सामूहिक बलात्कार किया.
बंगाल में माँ शब्द का चलन भी बहुत है, और माँ को मान्यता भी. लोग छोटी बच्चियों को भी माँ कहकर संबोधित करते हैं. बंगबंधु शेख मुजीब की बेटी भी तो इन लाखों रोहिंग्याओं के लिए माँ ही बन गई थी. कुटुपलांग के उन शरणार्थी शिविरों में अपनी आपबीती सुनाते हुए बार-बार चीत्कार के साथ महिलाएँ और बच्चियाँ ‘ओ माँ’ कहकर प्रधानमंत्री से लिपट जा रही थीं. इतने दुःख के बाद कोई अपना जो मिला था उन्हें. और माँ की ही तरह उनके सर को सहलाती, उन्हें भींचकर सीने से लगाती शेख हसीना अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थीं. बंगाल की खाड़ी के उस उदास किनारे पर मानो दुःख का समुद्र ही उमड़ पड़ा था. बेइंतिहा रुलाई के बीच उस दिन शेख हसीना के लिए किसी ने कहा 'मानवता की माँ'. लोकतंत्र की बेटी हसीना अब मानवता की माँ हो गई थी. आज बांग्लादेश में शेख हसीना की तस्वीर वाले पोस्टरों पर यही लिखा दिख रहा है- Sheikh Hasina: The Mother of Humanity.
(यह श्रृंखला जारी रहेगी. आने वाली किश्तों में इस समस्या के इतिहास- भूगोल- कारण- निवारण समेत कई और आयाम भी सामने आएँगे. पढ़ते रहिये. भाषा की मर्यादा रखते हुए आपके सभी कमेंट्स का स्वागत है. इस बार दोनों ही तस्वीर मेरी नहीं हैं. ब्लैक एंड वाइट तस्वीर एक दोस्त से मिली, जबकि दूसरी इन्टरनेट से )
