Friday, 3 November 2017

रोहिंग्या चित्रकथा- 3


25 अगस्त को म्यांमार में जब सेना द्वारा बड़े पैमाने पर नरसंहार और आगज़नी शुरू हुई तो बहुत तेज़ी के साथ लोग जितना हाथ में आया, उसे समेटकर बांग्लादेश सीमा की ओर भागे. नाफ नाम की एक बड़ी नदी काफी बड़े इलाके में म्यांमार और बांग्लादेश की सरहद बनाती है. बहुत से रोहिंग्याओं के लिए इसे पार कर के बांग्लादेश की सीमा में घुसना ही सबसे सरल रास्ता था. नाफ के अलावा भी उन्हें रास्ते में कई छोटी- बड़ी नदियों, जलधाराओं, समुद्र के बैक-वाटर्स और बरसात के पानी से जूझना था. कहीं - कही नाविकों ने भाड़े के लालच में ज्यादा लोगों को भर लिया, और पूरी नाव ही नाफ नदी या समुद्र में डूब गईं. अब भी हर दूसरे- तीसरे दिन नावों के डूब जाने से लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं.

ये नावें भी बड़ी नदियों को पार करने के लिए ही थीं, छोटे नदी- नालों और बरसात के पानी से भरे जंगली रास्तों को बिना नाव के ही तय करना था. बच्चे- बूढ़े और बीमार लोगों को घरवाले जैसे- तैसे लाद- फांद कर लाए. इनमें से कुछ बीच में ही दम तोड़ बैठे,उनकी कब्रें वहीं बनीं, और रास्ता आगे बढ़ता गया.

देखते ही देखते हज़ारों की संख्या में रोहिंग्या बांग्लादेश की सीमा पर इकठ्ठा हो गए. शुरू में कुछ दिन तक बांग्लादेश सरकार को समझ में नहीं आया कि वह क्या करे. सीमा पर इकठ्ठा रोहिंग्या लोगों को रोकने में बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड्स को दिक्कत आने लगी थी. उधर सीमा पर रोहिंग्याओं की संख्या बढ़ रही थी, इधर बांग्लादेश के भीतर जनता और मीडिया ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं और अंतरराष्ट्रीय व स्थानीय एन जी ओ ने भी लगातार जोर लगाया. तब कहीं जाकर यह ऐलान हुआ कि बांग्लादेश रोहिंग्या लोगों को शरण देगा.

25 अगस्त को शुरू हुए नरसंहार के करीब करीब बीस दिन बाद कुटुपलांग शरणार्थी कैंप पहुंचकर भरी आँखों से प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने ऐलान किया कि अगर बांग्लादेश अपने 16 करोड़ नागरिकों के लिए अनाज जुटा सकता है तो है, तो इन 7-8 लाख लोगों का पेट भी भरेगा. इस मौके पर शेख हसीना के साथ उनकी बहंन शेख रेहाना भी थीं. जब शेख हसीना यह कह रही थीं, तब शायद दोनों बहनों की आँखों के सामने बयालीस साल पहले की वह रात ज़रूर रही होगी, जब उन्हीं की सेना के कुछ लोगों ने उनके पिता (बांग्लादेश के राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान), माँ, तीन छोटे भाइयों समेत संयुक्त परिवार के बीसेक लोगोंकी हत्या कर दी थे. इनमें उनका 10 साल का सबसे छोटा भाई शेख रासेल भी शामिल था. दोनों बहनें उस समय बांग्लादेश के बाहर थीं, इसलिए बच गईं. इसके बाद करीब छः साल तक दोनों बहनों को भारत और यूरोप में निर्वासित जीवन बिताना पडा था.
बहरहाल, बांग्लादेश ने जैसे ही अपनी सीमाएं खोलीं, शरणार्थियों का तांता लग गया. जब मैं इन शिविरों तक पहुंचा, तब तक करीब पौने छः लाख रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में आ चुके थे. अभी दो दिन पहले बांग्लादेश सरकार और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं ने जब ताज़ा आंकड़े जारी किये तो यह संख्या सवा छः लाख के आसपास पहुँच चुकी है. इसमें अस्सी के दशक से लेकर इस साल 25 अगस्त के बीच बांग्लादेश आए दो लाख शरणार्थी शामिल नहीं हैं. उन्हें जोड़कर तो सरकारी आंकडा आठ लाख और गैर सरकारी अनुमान नौ लाख के ऊपर पहुँच चुका है.

खैर, 12- 13 सितम्बर को, जब शेख हसीना रोहिंग्या शिविरों को देखने पहुंची तो उन्हें देखते ही बालुखाली-कुटुपलांग के शिविरों में एक साथ सैकड़ों महिलाओं के आर्त्रनाद गूँज उठे. जब माँओं ने बिलखते हुए बताना शुरू किया कि किस तरह उनकी गोद से छीनकर बच्चों को आग में झोंक दिया गया तब वहाँ मौजूद फौज के जवानों तक को रुलाई आ गई. शेख हसीना की आँखों से आंसू छलक पड़े जब एक महिला ने शेख हसीना को बताया कि कैसे म्यांमार के फौजियों और स्थानीय लोगों ने उसके अलावा लगभग तीस अन्य महिलाओं और लड़कियों को घरों से खींचकर एक जगह पर इकठ्ठा किया, और उनके साथ बर्बरता से सामूहिक बलात्कार किया.

बंगाल में माँ शब्द का चलन भी बहुत है, और माँ को मान्यता भी. लोग छोटी बच्चियों को भी माँ कहकर संबोधित करते हैं. बंगबंधु शेख मुजीब की बेटी भी तो इन लाखों रोहिंग्याओं के लिए माँ ही बन गई थी. कुटुपलांग के उन शरणार्थी शिविरों में अपनी आपबीती सुनाते हुए बार-बार चीत्कार के साथ महिलाएँ और बच्चियाँ ‘ओ माँ’ कहकर प्रधानमंत्री से लिपट जा रही थीं. इतने दुःख के बाद कोई अपना जो मिला था उन्हें. और माँ की ही तरह उनके सर को सहलाती, उन्हें भींचकर सीने से लगाती शेख हसीना अपने आंसुओं को रोक नहीं पा रही थीं. बंगाल की खाड़ी के उस उदास किनारे पर मानो दुःख का समुद्र ही उमड़ पड़ा था. बेइंतिहा रुलाई के बीच उस दिन शेख हसीना के लिए किसी ने कहा 'मानवता की माँ'. लोकतंत्र की बेटी हसीना अब मानवता की माँ हो गई थी. आज बांग्लादेश में शेख हसीना की तस्वीर वाले पोस्टरों पर यही लिखा दिख रहा है- Sheikh Hasina: The Mother of Humanity.

(यह श्रृंखला जारी रहेगी. आने वाली किश्तों में इस समस्या के इतिहास- भूगोल- कारण- निवारण समेत कई और आयाम भी सामने आएँगे. पढ़ते रहिये. भाषा की मर्यादा रखते हुए आपके सभी कमेंट्स का स्वागत है. इस बार दोनों ही तस्वीर मेरी नहीं हैं. ब्लैक एंड वाइट तस्वीर एक दोस्त से मिली, जबकि दूसरी इन्टरनेट से )

रोहिंग्या चित्रकथा-2



आंसुओं में डूब जाने से ठीक पहले की तस्वीर है यह. यह एक ऎसी रोहिंग्या माँ है, जिसके दस साल के बेटे को म्यांमार सेना के दरिन्दे घर से खींच कर ले गए और कई दूसरे लड़कों, आदमियों के साथ लाइन में खडा करके उसे गोलियों से भून दिया गया. ये लोग बता रहे हैं कि म्यांमार सेना ने माँओं की गोद से छीनकर भी बच्चों को गोली मारी. कई जगहों पर तो बच्चों को ज़िंदा ही आग में झोंक दिया गया. हमारी यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि इसके पति का क्या हुआ, और म्यांमार की सेना ने इसे और घर की दूसरी महिलाओं को क्यों छोड़ दिया, क्या किया इसके साथ? वह सब आगे की किसी किश्त में..

दरअसल सरहद पार करके आने वाले वयस्कों और किशोरों में महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा है. पहले तो लगा कि यह कि अपने घरों- ज़मीनों को बचाने के लिए कुछ पुरुष अभी भी उधर ही रुके हुए हैं. लेकिन पूछने पर पता चला कि यह म्यांमार की सेना (और सरकार) ने एक योजनाबद्ध तरीके से पुरुषों और लड़कों को मारने और महिलाओं के साथ बलात्कार करने का जाना- पहचाना तरीका अपनाया है. बांग्लादेशियों को अभी भी यह याद है कि किस तरह बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना भी यही सब कर रही थी, और आज रोहिंग्याओं पर अत्याचार के लिए म्यांमार सरकार को गरियाने वाले पाकिस्तान समर्थक बांग्लादेशी कट्टरपंथी तब पाकिस्तानी सेना की मदद कर रहे थे.

इसे एथनिक क्लींजिंग कहा जा रहा है. जब किसी इलाके की बहुसंख्यक जनता या/ और सरकारें हत्याओं, जबरन बेदखली, और आतंक के ज़रिये किसी एक जातीय, नस्ली या धार्मिक पहचान वाले समूह का उस जगह से सफाया कर दे, या उसे किसी एक स्थान विशेष तक ही सीमित कर दे, तो उसे एथनिक क्लींजिंग कहा जाता है. वैसे मेरा हिसाब से किसी समूह की अलग एथनिक पहचान को ख़त्म करके उसे बड़े समूह का हिस्सा बना लेना भी एथनिक क्लींजिंग ही है. जेनोसाइड ( किसी समूची नस्ल का खात्मा) भी इससे जुड़ा हुआ कांसेप्ट है.

इतिहास में ऐसा बहुत सी कौमों ने किया है. यह तुर्की ने आर्मीनियाइयो के साथ किया है, स्पेन ने मुसलमानों के साथ किया, हिटलर के जर्मनी ने यहूदियों के साथ किया. हाल के सालों में यह शब्द 90 के दशक में शुरू हुए भूतपूर्व यूगोस्लाविया के बोस्निया- हर्जेगोविओना वगैरह के संघर्षों में सामने आया. वहाँ अपने प्रभाव वाले इलाकों में सर्बों ने बोस्नियाई मुसलमानों और क्रोट्स की एथनिक क्लींजिंग की. क्रोट्स ने अपने इलाकों से बोस्नियाई मुसलमानों और सर्बों को मार कर भगाया, और बोस्नियाई मुसलमानों ने क्रोट्स की हत्याएं की. इसी दशक में अफ्रीका के रवांडा में हुतू जनजाति के लोगों ने तुत्सी जातीय समूह के आठ – दस लाख लोगों को क़त्ल कर डाला, वह भी सिर्फ तीन- चार महीने में. रवांडा के गाँव- गली और खेत तक खून से लबालब भर गए.

वैसे एथनिक क्लीनज़िंग की एक साइलेंट फॉर्म ( मौन स्वरुप ) भी है. अपने पडौसी पाकिस्तान को लीजिये. यहअद्भुत देश भी अपने ईश्वर की कृपा से अपनी पाक ज़मीन को काफिरों से मुक्त कराकर इसे दार- उल- दहशत ( यानी टेररिस्तान) बनाने में लगभग कामयाब ही हो गया है.

लेकिन किसी समूह के कट्टरपंथी लोगों द्वारा एथनिक क्लींजिंग की चाह रखना और प्रयास करना ही काफी नहीं है. इसके लिए सरकारों की मौन या मुखर सहमति और साथ भी ज़रूरी होता है. हमारे देश के पूर्वोत्तर में नागा – कुकी संघर्ष समेत कई मामलों में इसकी कई कोशिशें हुई हैं. बांग्लादेश में कई कट्टरपंथी समूह लगातार हिन्दुओं, बौद्धों और ईसाइयों को खदेड़ने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ये दोनों सरकारें ऐसा होने नहीं देंगी.
अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में बाहर से गए गोरों ने कुछ दूसरे तरीके से वहाँ के मूल निवासियों के साथ भी लगभग यही किया है. इसका एक और तरीका है. हम जिस समय से इतिहास की शुरुआत मानते हैं, तबसे अब तक ईसाइयत और इस्लाम ने भी अक्सर राज्यसत्ता के साथ मिलकर तमाम जगहों पर जबरन हत्याओं और धर्म परिवर्तन के ज़रिये भी यह किया है. दूसरे बड़े मजहबों और पंथों में भी यह किसी न किसी अंश में हुआ ही है. शैव- वैष्णवों- बौद्धों के झगड़ों में भी इसकी कुछ झलक मिलती है. और हाँ, इससे पहले कि आप मुझे तथाकथित सेक्युलर बताकर कश्मीर का उदाहरण दें, मैं खुद ही लिख देता हूँ कि कश्मीर से जिस तरह मार- काट और डरा-धमकाकर वहाँ के बहुसंख्यक मुसलमानों ने अल्पसंख्यक हिन्दुओं को 'हमेशा के लिए' (जानबूझ कर इन शब्दों का इस्तेमाल कर रहा हूँ) कश्मीर घाटी से बाहर खदेड़ दिया, वह भी शुद्ध रूप से एथनिक क्लींजिंग ही है.

ये लीजिए, रोहिंग्या के बहाने एथनिक क्लींजिंग पर तमाम चर्चा हो गई. होनी भी चाहिए. हम अपने समकालीन इतिहास की किसी महत्वपूर्ण चर्चा में एकपक्षीय और सलेक्टिव नहीं हो सकते.... बहरहाल, रोहिंग्या चित्रकथा जारी रहेगी. ठीक लगे तो पढ़कर आगे भी बढाते रहिये. कोई तथ्यात्मक गलती हो तो उसकी और भी ध्यान दिलाते रहिये. इस शर्त के साथ, किभाषा की मर्यादा बनी रहे, किसी भी कमेन्ट और बहस का स्वागत है. जल्द ही मिलते हैं, रोहिंग्या चित्रकथा श्रृंखला के एक नए चित्र और एक नए आयाम के साथ.........

रोहिंग्या चित्र कथा- 1



पिछले दिनों कॉक्स बाज़ार, बांग्लादेश के कुछ रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में जाने का अवसर मिला. वहाँ बालूखाली कैम्प में देखने को मिला यह दुर्लभ दृश्य. संयोग से पास में कैमरा था सो तुरंत इसे कैमरे में उतार लिया.
अब यह न पूछियेगा कि इसमें दुर्लभ क्या है....गौर से देखिये तो बड़े बच्चे के होंठों पर मद्धम सी मुस्कान दिखेगी. अतिशयोक्ति न मानियेगा, सचमुच रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में यह मुस्कान बहुत दुर्लभ थी. आवाजें तो बहुत थीं यहाँ. लेकिन उन सबके ऊपर सन्नाटे की एक परत सी बिछी हुई थी. शुरुआत में ही अपने आसपास कुछ अजीब सा गूंजता सुनाई दिया मुझे. पहले लगा, यह सन्नाटे की आवाज़ है. लेकिन यह कुछ और था. सन्नाटा इतना निरंतर नहीं हो सकता. इसमें किसी गीत जैसा प्रवाह था. मैंने अपने सामने देखा ज़रूर है मृत्यु को, पर सुना नहीं था कभी. लगा, मृत्यु का ही तो गान है यह! यहाँ हर कोई अपने आप में एक समूचा मरघट लिए घूम रहा था. फिर क्यों न गूंजता यह संगीत. लेकिन जैसे – जैसे आगे बढ़ता गया, तो महसूस हुआ कि यह मौत ही नहीं थी अकेली. बहुत कुछ कुछ और भी था, जो लगातार जुगलबंदी कर रहा था मृत्यु के साथ....................
( रोहिंग्या चित्र कथा जारी रहेगी अगली तस्वीर के साथ)

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आज एक जीता, कल दूसरा शहीद हुआ.
आज दशमी, कल दस मोहर्रम.
दोनों मेरे नायक हैं.आज भी, कल भी
हे राम! या हुसैन!


दुर्गा को ..बताया, फिर राम को हत्यारा कहा, मुहर्रम पर हुसैन का मज़ाक, आज गांधी को गाली. अगर ये कुछ नहीं किया, तभी लाइक कीजियेगा !!
महानायक का बड्डे मनाते हुए मीडिया लोकनायक की जयंती भूल गया.
हमें याद है.
आज़ादी और लोकतंत्र के नायक, लोकनायक जयप्रकाश को सलाम !


सरयू किनारे लगने वाली बड़ी राम मूर्ति की मुद्रा क्या होगी?
शबरी के बेर खाते, निषादराज को गले लगाते राम, या धनुष ताने रौद्ररूप में?

गूगल का भारत सरकार से कोई समझौता हो गया है क्या? या डर रहा है। टाइप कर रहा हूँ ' ज़िम्मेदारी दी गई ', तो लिख रहा है ज़मींदारी दी गई।
राग बीच में टूट गया..प्राणों का पंछी रूठ गया..
चली गई ठुमरी की ‘अप्पा’..सुर भी अकेला छूट गया..........अंतिम प्रणाम गिरिजा देवी!!

टीवी चैनल वालो! रात 9 से 11 के बीच समाचार चैनलों में शुद्ध, मिलावट रहित खबर दिखाइए, बहस नहीं. बहस हम फेसबुक पे खुद ही कर लेंगे. 

अब इसमें राजनीति न कीजिये

देखिये, अब इसमें राजनीति न कीजिये. दोनों से कहता हूँ.

पहले आप सुनिए गेरुए गमछे वाले भाईसाहब. पहले इसलिए कि सत्ता वालों को सुनने का साहस रखना चाहिए. सही भी, और गलत भी. अब तक आप विपक्ष में थे, तो आप भी सुनाते थे न? तो सुनिए...शर्म नहीं आती आपको. आपके राज में ,सर्व विद्या की राजधानी में, महामना जी की बगिया में तीन सूअर एक लडकी के कपड़ों में हाथ डालते हैं. उससे कहते हैं कि.. बोल, मर्ज़ी से बॉयज हॉस्टल चलेगी या रेप करवाएगी...........आँख का पानी मर गया है क्या आपका?

(अगर किसी में पूरा पढने का धैर्य नहीं है तो वह कमेन्ट न करे, लाइक या शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं है 😊)

आपमें से कई ने नौ दिन का व्रत रखा होगा. अष्टमी को पाँव पखारने और जिमाने के लिए घर- घर जाकर कन्या खोजेंगे.और दुर्गा की इन जीवंत प्रतिमाओं पर लाठी चलने पर आप खुश हो रहे हैं. आप में से कुछ खून से तरबतर लड़कियों की फोटो के नीचे लिख रहे हैं.. और करो नेतागिरी. पार्टी के चक्कर में क्या ज़मीर मर गया है आपका?

कह रहे हैं कि लड़कियों का आन्दोलन वामपंथियों की साजिश है. धरने पर बैठी उन्नीस-बीस साल की सैकड़ों लड़कियों में से सब आइसा और एस एफ़ आई की कार्यकर्ता थीं? बताइये कितने वामपंथी हैं उत्तर प्रदेश में? उनके तमाम बड़े नेता तक तो सपा वगैरह में में चले गए थे बीस पच्चीस साल पहले ही. कामरेड ऊदल के बाद बनारस के आसपास की पट्टी में कोई बड़ा कम्युनिस्ट नेता नहीं हुआ. नक्सलियों का प्रभाव भी मिर्ज़ापुर- सोनभद्र वगैरह से ख़त्म हो गया है. थोडा आइसा को छोड़ दें तो किसी वामपंथी छात्र संगठन का बनारस ही नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में कोई नामलेवा नहीं है.

अच्छा वह सब छोडिए. यह बताइये कि आपका संगठन क्या इतना कमज़ोर है बी एच यू में कि आपके हाथ से आन्दोलन तथाकथित वामपंथी छीन ले गए. क्या इस आन्दोलन का नेतृत्व ज्ञान शील एकता की बात करने वाले आपके संगठन को नहीं करना चाहिए था? क्या बहनों के सम्मान के लिए आपके संगठन के लड़कों को आगे नहीं आना चाहिए था? क्या आपकी पार्टी की सरकार को यह सुनिश्चित नहीं करना चाहिए कि महामना की बगिया में ईस्टर्न यू पी और बिहार के पढने- लिखने और सोचने-समझने वाले लड़कों को हॉस्टल मिले न कि ठेकेदारों और नेताओं के लिए काम करने वाले गुंडों को?

क्या आपके प्रिय वी सी साहब को 'मधुर मनोहर अतीव सुन्दर' कैंपस को सुरक्षित बनाने के लिए काम नहीं करना चाहिए? गुंडागर्दी और छेड़खानी का शिकार होने वाली लड़कियों के लिए उनके पास दस मिनट का समय नहीं होना चाहिए क्या? एक बार अगर वी सी लड़कियों के बीच आकर उन्हें आश्वासन ही दे देते तो भी लडकियाँ अपने हॉस्टल में चली जातीं.

आप तो दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को मानते हैं. उनका कहना है कि शिक्षा और न्याय व्यवस्था को स्वायत्त रहना चाहिए. आप ही बताइये, प्राचीन गुरुकुलों की तरह क्या विश्व-विद्यालयों के आचार्यों और कुलपतियों को सता से दूर नहीं रहना चाहिए? फिर क्यों प्रो. त्रिपाठी जी सत्ता धारियों की चरणवंदना में लगे रहते हैं. अब इसका प्रमाण न मांगिएगा. जवाब न हो तो चुप रहना ही ठीक रहता है.

बेटी बचाओ- बेटी पढाओ की मुझे आपकी नीयत पर मुझे कोई शक नहीं. तो फिर क्यों नहीं गरिमा और निर्भयता से पढने देते अपनी ही बच्चियों को? आप तो सत्ता धारी हैं. योगी जी ने अभी कुछ दिन पहले ही कहा है कि अपराधियों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जाएगा. तो फिर कैंपस के भीतर भी अपराधियों की सफाई कीजिये न? शुरुआत आज से कीजिए.

अब आपका नंबर है अंधविपक्षी साहेबान. यह ठीक है कि विपक्ष को इसमें चुपचाप बैठे नहीं रहना चाहिए, और इसमें से भी एक आन्दोलन की संभावना को तलाशना चाहिए, लेकिन आपमें से बहुत से लोग गंदी राजनीति कर रहे हैं. कुछ लोग ऐसा प्रजेक्ट कर रहे हैं, मानो बी एच यू के सभी लड़के गर्ल्स हॉस्टल के सामने आकर अपनी पैन्ट खोल रहे हैं. बी एच यू के सारे लड़के संघी है, और संघी लड़के लड़कियों को छेड़ रहे हैं. सुबूत न मांगिएगा. कई नंगे हो जाएंगे.

आपको वी सी, जिला प्रशासन और प्रदेश की सरकार को गरियाना है तो जमकर गरियाइए. मगर आपमें से कई तो जे एन यू का बदला बी एच यू को बदनाम करके लेना चाह रहे हैं. आप यह भी लिख रहे हैं कि बीजेपी के गुंडों से लड़कियों को बचाना है, जबकि सच यह है कि बीजेपी के वीसी से कैंपस को बचाना है. मैं शर्त के साथ कहता हूँ कि आज भी बी एच यू कैम्पस में बीजेपी से कम गुण्डे समाजवादी पार्टी के नहीं होंगे. पाँच साल सत्ता में रहे, तब काहे नहीं साफ़ किया अखिलेश जी ने प्रदेश के परिसरों को? कौन रोकता था उन्हें? बीजेपी ? बीएसपी? या संयुक्त राष्ट्र? योगी को कोसते हो, भूल जाते हो कि किस क़दर बुलंद थे बदमाशों के हौसले. मेरे घर के सामने पार्क है. उसके आसपास कुल चालीस घर होंगे. उनमें से कम से कम 7 घरों की महिलाओं के पर्स या चेन खींच ले गए समाजवादी पार्टी के गुंडे ( बुरा लगा न? बिलकुल गलत लिखा है मैंने. वैसे ही आप भी बार-बार भाजपाई गुंडे कह रहे हैं)

आप भाजपा से पीड़ित हैं तो इसका मतलब नहीं कि हर मामले को गाय- गोबर, वेमुला-लंकेश और रोहिंगिया-कश्मीरी वगैरह से जोड देंगे. बी एच यू को पोंगापंथी का अड्डा बताएंगे. आप जानते हैं बी एच यू ने कितने समाजवादी, साम्यवादी और प्रगतिशील नेता, विचारक और एक्टिविस्ट दिए हैं? वैज्ञानिक, कलाकार, साहित्यकार आदि भी? नाम गिनाऊंगा तो दिन निकल जाएगा. और आप इसके नाम में लगे हिन्दू शब्द की मज़ाक बना रहे हैं. बीएचयू को बनारस के पंडों की चुटिया के साथ जोड़कर फेसबुक पर चुटकुले छाप रहे हैं. जबकि आपकी पोस्ट पर दुर्गा को गालियाँ और आतंकवाद का समर्थन साफ़ दिख रहा है.

कमाल है यार. आप इसे अपने प्रिय मुद्दे फासीवाद से जोड़ रहे हैं. लड़कियों के साथ इस तरह के दुर्व्यवहार को फासीवाद कहते हैं क्या? नहीं. इसे मर्दवाद कहते हैं, इसे स्त्री का असम्मान कहते हैं, इसे हमारे दोमुंहे समाज में सर्वथा व्याप्त यौन कुंठा कहते हैं, इसे हमारा असल संस्कार और हमारा राष्ट्रीय चरित्र कहते हैं, इसे राजनीतिक दलों और सरकारों की लानत कहते हैं. इसे सरकार की असंवेदनशीलता और वाइस चांसलर का निकम्मापन कहते हैं. इसे चुल्लू भर पानी कहते हैं, जिसमें छलांग लगाने को कोई तैयार नहीं हो रहा.

अरे, आप वी सी को हटाने की बात कीजिये न! कैंपस को सुरक्षित बनाने की बात कीजिये. लड़कियों का आत्मविश्वास बढाने की बात कीजिये. मोदी जी, उनकी पार्टी, उनके मुख्यमंत्री - सब का विरोध कीजिये, लेकिन ये सब हरकतें न कीजिये, जिससे सभी को आपसे चिढ आती है.

कल देर रात एक वामपंथी प्रोफ़ेसर साहब ने एक वीडियो शेयर किया. इसमें पुलिस लड़कों को पीटती-दौडाती नज़र आ रही है., और लड़के वी सी को भद्दी भद्दी माँ की गालियाँ इस तरह से दे रहे हैं कि साफ़ लग रहा है कि इनमें से ही कोई गर्ल्स हॉस्टल के सामने अपनी पैन्ट खोलता होगा. और हाँ, कल रात कैंपस के अन्दर देसी बम चलाने वाले बीजेपी के लड़के थे?

वैसे ईमानदारी से बताइये. आपमें से कुछ लोग परिसर में बम चलने की बात से भी खुश हुए कि नहीं? मैंने फेसबुक पर बाढ़ और रेल दुर्घटनाओं पर प्रसन्न होते लोगों को देखा है. अंतराराष्ट्रीय मंचों पर भारत की फजीहत पर लोगों के चेहरे खिले देखे हैं. क्या हो गया है आपको? अरे देश कोई नरेंदर मोदी है क्या? या उनके नाम लिखा है? अपना आधार बनाइए. असल मुद्दों पर बात कीजिये. देश को आपके झंडों की नहीं, आपके नेतृत्व की ज़रुरत है.
भाजपा वाले अपनी पार्टी को सिर्फ फेसबुक और सेमिनारों की प्रतीकात्मकता से ही नहीं चला रहे. बौद्धिकता और भाषणों से बाहर निकलिए. संगठन बनाइये. कैंपस में पहले से लगे मंच से भाषण देना आसान है. अपनी पहल कीजिये. किसानों, गरीबों, मजदूरों की बात कीजिये. अपनी पार्टी में दलितों- आदिवासियों- गरीबों को जगह दीजिये. पार्टी को अपने परिवार और अपनी जाति की बपौती न बनाइये. हर चीज़ पर मोदी जी को गरियाना देना छोड़कर कायदे की बात कीजिये. नई पीढी पहले से ज्यादा संतुलित और समझदार है. उसे बतोले नहीं कार्यक्रम दिखता है. कैंपस के बच्चों का साथ दीजिये, लेकिन आज की राजनीति उनके पीछे रहने से नहीं आगे आकर उन्हें रास्ता दिखाने से बनेगी.

बहरहाल, जो इन दोनों में शामिल नहीं हैं, और लड़कियों के साथ हैं, उन सभी को शुक्रिया.......जिंदाबाद!!!

अति सौम्यातिरौद्रायै

शाबास लडकियो. त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरण धारिणी. और चुल्लू में पानी ले लीजिये वाइस चांसलर साहब. आप और आपके कर्मचारी बी एच यू गेट पर लड़कियों के धरने को यूनिवर्सिटी को बदनाम करने की साजिश बता रहे हैं.

फेसबुक मित्रो, अगर आपको बी एच यू का मामला जे एन यू वगैरह जैसा कोई मामला लग रहा है तो आगे की लाइनों को गौर से पढ़िए. ये लडकियाँ ‘टुकड़े होंगे इंशा-अल्लाह’ और ‘आज़ादी – आज़ादी’ वाली लडकियां नहीं हैं. ये तो अपने एक सामान्य से अधिकार, गरिमा और निर्भयता से जीने के हक़ के लिए लड़ रही हैं. अब आपको लगेगा कि बी एच यू जैसी जगह पर पढने वाली लड़कियों की गरिमा पर क्या ख़तरा आन पड़ा? कुछ छेड़खानी हुई होगी. 

तो आइये महानुभावो. तथाकथित छेड़खानी का स्वरुप समझ लीजिये. कल्पना कीजिये कि आपकी बेटी या बहन या भतीजी अकेली या मेरे घर की एक लड़की के साथ अपने हॉस्टल से बाहर निकल रही है. सामने कुछ सूअर खड़े हुए हैं. लड़कियों को देखकर सूअरों के मुंह से अश्लील शब्द निकलने लगते हैं. फिर एक सुअर आपके और मेरे घर की उन लड़कियों के सामने आ जाता है. सुअर का हाथ अपनी पैन्ट की ज़िप तक जाता है, और उसके बाद सुअर अपना अंग विशेष पैन्ट से बाहर निकाल लेता है.

उबकाई सी आ रही है न! और गुस्सा भी!! मैं यकीनन कह सकता हूँ कि वी सी त्रिपाठी जी का समर्थन करने वाले भी इस बात को पढ़कर स्तब्ध रह जाएंगे. और ऎसी कोई एकाध घटना नहीं हुई. यह लगभग एक नियम बन गया है. ताज़ातरीन घटना में हॉस्टल की ओर जाती एक लड़की के कुर्ते में हाथ डाल दिया तीन शोहदों ने, और उसके कपडे उतारने की कोशिश करने लगे. बोले - मर्जी से हॉस्टल चलेगी या ज़बरदस्ती रेप करवाएगी?

ऎसी ही मामूली 'छेडखानियों' का शिकार हुई लडकियाँ आज इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है. तुम्हें सलाम है लडकियों...... ततः सा चंडिका क्रुद्धा !!!

आपको तो खबर मिली न योगी जी? यह सब मालवीय जी के बी एच यू में हो रहा है. सरस्वती के मंदिर में. आप तो इस मंदिर के रक्षक- संरक्षक हैं. तो देख क्या रहे हैं? जाइए बी एच यू . नवरात्र में तो आप कन्याओं के पैर पखारते हैं. इन दुर्गाओं के पैर न पकड़ पाएं, तो सर पर अभय का हाथ ही रख दीजिये. लगाइए कुछ तेज़तर्रार पुलिस वालों को. और खाल उधड़वा दीजिये कुछ सूअरों की. और तब कोई कानूनी प्रक्रिया के पालन, पुलिस ज्यादती, अधिकार- फधिकार की बात करे तो उसे भी उधेड़ दीजिये बेहिचक.

आप तो जानते ही होंगे, उत्तर प्रदेश की कोई भी यूनिवर्सिटी हो, लड़कों के हॉस्टल में अधिकतर नेतागिरी और गुण्डई करने वालों का ही बाहुल्य रहता है. हॉस्टल और कैंपस से निकाल बाहर कीजिये गुंडों को. निर्ममता से रगड़ के सफाई कीजिए विद्या के मंदिरों की. फिर इसमें सपा- बसपा- भाजपा- कम्युनिस्ट किसी का परहेज़ न कीजिये.

और आप! ज्ञान –शील- एकता की बात करने वाले विद्यार्थी परिषद के भाइयो! बी एच यू में तो बड़े सक्रिय हैं आप! अपने सामने अपनी बहनों के शील पर हमला कैसे बर्दाश्त कर लेते हैं आप? और जब लडकियां सड़क पर उतरती हैं तो आप वी सी का समर्थन सिर्फ इसलिए करते हैं कि वह आपके परिवार का आदमी है. आइये, इन बहनों के साथ एकजुटता दिखाइये, और विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार को कुछ बेहद कठोर क़दम उठाने पर मजबूर कर दीजिये. देख रहे हैं मनोज सिन्हा? महेन्द्रनाथ पाण्डेय? आपकी सरकारों में ही आपके बी एच यू की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. आइये न! नवरात्र का कुछ पुण्य ही कमा लीजिये!

और तुम, लडकियों..डटी रहना. काशी के लोग हैं न, तुम्हारे लोकल गार्जियन. अति सौम्यातिरौद्रायै नतास्तस्यै नमो नमः

चाटने को तलुए चार- चार.

महिला विरोधी फेसबुकियो, पितृ सत्ता किस तरह तुम्हारे दिमागों में भरी हुई है. ऊटपटांग चुटकुले बनाते हो. राहुल गांधी से कहते हो कि राहुल भैया शादी कर लो, नहीं तो भारत की प्रजा आने वाले समय में किसके तलुवे चाटेगी. शर्म करो मर्द वादियों, और आँखें खोलो. अरे नादानों, उधर देखो...दिल्ली की ओर. बेटी का हक मारने वाले चोरो. क्या दिल्ली की दिशा से आता हुआ चार चमकदार तलुवों का प्रकाश सचमुच तुम्हें नहीं दिख रहा.

अरे नादानों, गांधी विरोधियो, कलियुग के कंसो, क्या सचमुच तुम्हें मालूम नहीं कि पवित्र वढेरा- गांधी कुलों के सम्बन्ध से हमारे राष्ट्रीय भांजा- भांजी अवतरित हो चुके हैं. अभागो, अगर तलुवे चाटने को नहीं मिलते तो उन तलुओं से निकलती रौशनी को ही चाट लो. 

सावधान की मुद्रा में खड़े होकर ‘जय हे’, ‘जय हे’ क्यों नहीं गाते मूर्खो. भावी भारत भाग्य विधाता अवतरित हो चुके हैं. पूरे भारत नूँ लख- लख वधाइयां. तू बड़ा कारसाज़ है ऐ खुदा.

अबकी बार, दो- दो अवतार. यानी चाटने को तलुए चार- चार.