कोई दो साल पहले की बात है. मैं शाम के समय अपनी पत्नी को लेने उनके ऑफिस गया हुआ था. उन्हें थोड़ी देर थी, तो मैं सामने की सड़क पर टहलने लगा. तभी तकरीबन पचास साल की उम्र का एक दुबला- पतला कमज़ोर सा आदमी मेरे सामने आकर रुक गया. उसके चेहरे पर बेहिसाब मायूसी थी. आँखों में छलक आये आंसुओं के साथ उसने मुझे बताया कि उसे हरदोई जाना है, और उसके पैसे ख़त्म हो गए हैं. इसमें ज्यादा सोचना नहीं था. मैंने जेब से एक सौ का नोट निकाला और उसके हाथ में रख दिया. हाथ जोड़कर वह आगे बढ़ गया. उसके चेहरे पर दुआ देने वाले भाव नहीं थे, जो भिखारियों या नाटकबाज़ ठगों के चेहरे पर होते हैं, बल्कि एक स्पष्ट सा धन्यवाद था. मुझे भी अच्छा लगा. कुछ देर बाद मेरी पत्नी ऑफिस का काम निपटाकर आ गयी, और हम लोग पैदल हीकुछ खरीदारी करने पास के बाज़ार की और चल दिए. मैं इस घटना के बारे में पत्नी को बता ही रहा था कि वही आदमी दिखाई दिया. मैं चौंका. यह आदमी हरदोई जाने के बजाय यहाँ क्या कर रहा है. फिर सोचा कि शायद कुछ काम होगा. लेकिन इससे पहले कि मैं उसे अपनी पत्नी को दिखाता, वह सड़क किनारे बैठे मेहंदी लगाने वाले दो लड़कों के सामने रुक गया. दोनों लड़कों से उसकी कुछ बात हुई, और उसके बाद वह दूसरी ओर को बढ़ गया. जिज्ञासावश मैं उन दोनों लड़कों के पास गया और उनसे पूछा कि वह आदमी क्या कह रहा था. मालूम हुआ कि उसने लड़कों को वही कहानी सुनाई और कहा कि उसे सीतापुर जाना है (जबकि मुझे उसने हरदोई जाने की बात कही थी). पत्नी के रोकते- रोकते भी मैं उस आदमी की ओर लपका, और कुछ दूर चलकर उसके सामने खड़ा हो गया. इसके बाद की कहानी संक्षेप में यह है कि मैं उसे डांटते हुए अपना सौ का नोट उससे वापस मांग लाया. मेरी पत्नी ने बड़ी खराब सी प्रतिक्रिया दी, और महीनों तक इस कहानी को सभी को सुनाती रहीं. वाकई यह एक अजीब सी बात थी. बाद में मुझे भी बहुत बुरा सा लगा. लेकिन आज जब टी वी पर देखा कि अरविन्द केजरीवाल को नीली मारुती वैगन आर दान देने वाले व्यक्ति ने वह कार और एक लाख रुपये का अपना चन्दा वापस मांग लिया है, तो अजीब नहीं लगा. मैं उस आदमी से अपने सौ रुपये इसलिए वापस मांग लाया था, क्योंकि मैंने खुद को ठगा हुआ महसूस किया था. लन्दन वाले उस व्यक्ति ने भी यकीनन यही महसूस किया होगा.