सवाली- ख्याली सीरीज -4 ( खयाली बारादरी के सामने वाली चाय की दूकान पर उदास बैठा है)
सवाली- क्या बात है दद्दू, बड़े उदास हो, क्या हो गया?
ख्याली- कुछ नहीं बेटा, एहसान अकरम चचा गुज़र गए.
ख्याली- कुछ नहीं बेटा, एहसान अकरम चचा गुज़र गए.
सवाली- ओहो..बड़े अफ़सोस की बात है. क्या उम्र थी?
ख्याली- यही कोई अस्सी साल.
ख्याली- यही कोई अस्सी साल.
सवाली- चलो , तब तो......बाल बच्चे पहुँच गए थे, आखिरी समय में?
ख्याली- पहुँच क्या गए थे, साथ ही थे.
ख्याली- पहुँच क्या गए थे, साथ ही थे.
सवाली- अच्छा, तो इसका मतलब बाल बच्चे भी लखनऊ में ही रहते थे.
ख्याली- नहीं, लखनऊ में तो नहीं रहते थे.
ख्याली- नहीं, लखनऊ में तो नहीं रहते थे.
सवाली- तो क्या एहसान चचा यहाँ अकेले ही रहते थे?
ख्याली- नहीं, अहसान चचा यहाँ नहीं रहते थे.
ख्याली- नहीं, अहसान चचा यहाँ नहीं रहते थे.
सवाली- रहने वाले तो लखनऊ के ही होंगे. तभी तो यहाँ आये होंगे?
ख्याली- नहीं, रहने वाले तो यहाँ के नहीं थे.
ख्याली- नहीं, रहने वाले तो यहाँ के नहीं थे.
सवाली- तो फिर शादी- ब्याह में आये होंगे. या फिर किसी से मिलने.
ख्याली- नहीं, ऐसा भी नहीं है. एहसान चचा तो अपना घर देखने आये थे.
ख्याली- नहीं, ऐसा भी नहीं है. एहसान चचा तो अपना घर देखने आये थे.
सवाली- मतलब? जब रहने वाले यहाँ के नहीं थे, तो फिर किसका घर देखने आये थे.
ख्याली- घर तो अपना ही देखने आये थे.
ख्याली- घर तो अपना ही देखने आये थे.
सवाली- क्या मतलब? खैर ये बताओ, तुम एहसान चचा को कैसे जानते थे?
ख्याली- नहीं तो, मैं तो एहसान चचा को बिलकुल नहीं जानता था.
ख्याली- नहीं तो, मैं तो एहसान चचा को बिलकुल नहीं जानता था.
सवाली- अरे जब तुम उन्हें जानते ही नहीं थे, तो फिर ........अमां दद्दू. ठीक- ठीक बताओ. हमारी तो समझ में ही नहीं आ रहा. मज़ाक तो नहीं कर रहे हो?
ख्याली- किसी की मौत पर मज़ाक नहीं किया जाता बेटा. हमें तो उनकी मौत की खबर अखबार से मिली. पता चला कि एहसान चचा लखनऊ के एक होटल में रुके हुए थे. लखनऊ से लखीमपुर के औरंगाबाद जाने वाले थे....अपने घर को देखने. काफी दिनों से अपना घर- गाँव नहीं देखा न. कोई सडसठ साल पहले गाँव से निकले, तो फिर कभी वापस नहीं आ पाए. अब आये थे सबको लेकर. सोचा खुद भी देख लेंगे, और बच्चों- पोते- पोतियों को भी दिखा देंगे.. अपना गाँव...अपना घर...अपना बगीचा, जिसमें आमों पर बौर आ गयी होगी....... बहुत खुश थे.. किसी बच्चे की तरह तरह चहक रहे थे. आज ही लखनऊ से लखीमपुर के लिए निकलना था. सभी लोग तैयार होकर होटल के कमरों से बाहर निकले, लेकिन सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त एहसान चचा का पैर जो फिसला, तो फिर वो उठ ही नहीं पाए. अपना घर देखने की अधूरी इच्छा के साथ वहीं दम तोड़ दिया.
ख्याली- किसी की मौत पर मज़ाक नहीं किया जाता बेटा. हमें तो उनकी मौत की खबर अखबार से मिली. पता चला कि एहसान चचा लखनऊ के एक होटल में रुके हुए थे. लखनऊ से लखीमपुर के औरंगाबाद जाने वाले थे....अपने घर को देखने. काफी दिनों से अपना घर- गाँव नहीं देखा न. कोई सडसठ साल पहले गाँव से निकले, तो फिर कभी वापस नहीं आ पाए. अब आये थे सबको लेकर. सोचा खुद भी देख लेंगे, और बच्चों- पोते- पोतियों को भी दिखा देंगे.. अपना गाँव...अपना घर...अपना बगीचा, जिसमें आमों पर बौर आ गयी होगी....... बहुत खुश थे.. किसी बच्चे की तरह तरह चहक रहे थे. आज ही लखनऊ से लखीमपुर के लिए निकलना था. सभी लोग तैयार होकर होटल के कमरों से बाहर निकले, लेकिन सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त एहसान चचा का पैर जो फिसला, तो फिर वो उठ ही नहीं पाए. अपना घर देखने की अधूरी इच्छा के साथ वहीं दम तोड़ दिया.
सवाली- इन्नलिल्लाही व इन्न इलैहि राजियून.........लेकिन दद्दू ऐसा भी क्या था जो एहसान चचा इतने सालों तक अपने गाँव ही नहीं आ पाए.
ख्याली- बाहर देश रहते थे बेटा.
ख्याली- बाहर देश रहते थे बेटा.
सवाली- दद्दू. जो लोग बाहर देश रहते हैं, उनके पास तो बहुत पैसा होता है. तो टिकट की तो कोई समस्या नहीं रही होगी. जवानी में तो किसी के साथ के मोहताज़ भी नहीं रहे होंगे. खुद ही आ जाते.
ख्याली- आ तो जाते बेटा, लेकिन वीजा की दिक्कत थी.
ख्याली- आ तो जाते बेटा, लेकिन वीजा की दिक्कत थी.
सवाली- अरे? अपने ही देश में आने के लिए कौन सा वीजा. अरे अच्छा... अमरीका- कनाडा बस गए होंगे, और वहीं का पासपोर्ट ले लिए होगा. लेकिन अमरीका में बस गए हिन्दुस्तानियों को तो आसानी से भारत का वीजा मिल जाता है. ये कौन सी जगह है? कहाँ रहते थे एहसान चचा?
ख्याली- बेटा, तेरह साल की उम्र में अपने माँ- बाप और भाई- बहिनों के साथ एहसान चचा जिस शहर में जाकर बस गए थे, उसका नाम है कराँची. अब समझे????
ख्याली- बेटा, तेरह साल की उम्र में अपने माँ- बाप और भाई- बहिनों के साथ एहसान चचा जिस शहर में जाकर बस गए थे, उसका नाम है कराँची. अब समझे????
सवाली- (गहरी साँस लेता है). समझ गया दद्दू. लेकिन ये लोग कब समझेंगे. वैसे देख लेना, एहसान अकरम चचा अगले जनम में यहीं पैदा होंगे. यहीं कहीं. लखीमपुर या लखनऊ में.
ख्याली- इस्लाम में पुनर्जन्म नहीं होता बेटा.
ख्याली- इस्लाम में पुनर्जन्म नहीं होता बेटा.
सवाली- लेकिन हमारे एहसान चचा का पुनर्जन्म होगा द्द्दू. बिलकुल होगा, और इस बार वो कहीं दूसरे शहर जाकर नहीं बसेंगे.
(सवाली बुरी तरह रो पड़ता है. उसे गले लगाकर ख्याली के भी आंसू बह निकलते हैं. बगल वाली पुरानी हवेली में पचासी साल के सरदार दिलबाग सिंह ने फिर से वही पुराना गाना चला दिया है, और सुनते- सुनते उदास हो गए हैं. वाजिद अली शाह लिख रहे है, और उनके सामने खड़े कुंदन लाल सहगल गा रहे हैं- बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाए.)
‘होटल में गिरने से पाकिस्तानी नागरिक की मौत’- दैनिक जागरण, 14 मार्च 2015.