Sunday, 15 March 2015

सवाली और ख्याली: बाबुल मोरा नैहर उर्फ़ एहसान चचा

सवाली- ख्याली सीरीज -4 ( खयाली बारादरी के सामने वाली चाय की दूकान पर उदास बैठा है)
सवाली- क्या बात है दद्दू, बड़े उदास हो, क्या हो गया?
ख्याली- कुछ नहीं बेटा, एहसान अकरम चचा गुज़र गए.
सवाली- ओहो..बड़े अफ़सोस की बात है. क्या उम्र थी?
ख्याली- यही कोई अस्सी साल.
सवाली- चलो , तब तो......बाल बच्चे पहुँच गए थे, आखिरी समय में?
ख्याली- पहुँच क्या गए थे, साथ ही थे.
सवाली- अच्छा, तो इसका मतलब बाल बच्चे भी लखनऊ में ही रहते थे.
ख्याली- नहीं, लखनऊ में तो नहीं रहते थे.
सवाली- तो क्या एहसान चचा यहाँ अकेले ही रहते थे?
ख्याली- नहीं, अहसान चचा यहाँ नहीं रहते थे.
सवाली- रहने वाले तो लखनऊ के ही होंगे. तभी तो यहाँ आये होंगे?
ख्याली- नहीं, रहने वाले तो यहाँ के नहीं थे.
सवाली- तो फिर शादी- ब्याह में आये होंगे. या फिर किसी से मिलने.
ख्याली- नहीं, ऐसा भी नहीं है. एहसान चचा तो अपना घर देखने आये थे.
सवाली- मतलब? जब रहने वाले यहाँ के नहीं थे, तो फिर किसका घर देखने आये थे.
ख्याली- घर तो अपना ही देखने आये थे.
सवाली- क्या मतलब? खैर ये बताओ, तुम एहसान चचा को कैसे जानते थे?
ख्याली- नहीं तो, मैं तो एहसान चचा को बिलकुल नहीं जानता था.
सवाली- अरे जब तुम उन्हें जानते ही नहीं थे, तो फिर ........अमां दद्दू. ठीक- ठीक बताओ. हमारी तो समझ में ही नहीं आ रहा. मज़ाक तो नहीं कर रहे हो?
ख्याली- किसी की मौत पर मज़ाक नहीं किया जाता बेटा. हमें तो उनकी मौत की खबर अखबार से मिली. पता चला कि एहसान चचा लखनऊ के एक होटल में रुके हुए थे. लखनऊ से लखीमपुर के औरंगाबाद जाने वाले थे....अपने घर को देखने. काफी दिनों से अपना घर- गाँव नहीं देखा न. कोई सडसठ साल पहले गाँव से निकले, तो फिर कभी वापस नहीं आ पाए. अब आये थे सबको लेकर. सोचा खुद भी देख लेंगे, और बच्चों- पोते- पोतियों को भी दिखा देंगे.. अपना गाँव...अपना घर...अपना बगीचा, जिसमें आमों पर बौर आ गयी होगी....... बहुत खुश थे.. किसी बच्चे की तरह तरह चहक रहे थे. आज ही लखनऊ से लखीमपुर के लिए निकलना था. सभी लोग तैयार होकर होटल के कमरों से बाहर निकले, लेकिन सीढ़ियों से नीचे उतरते वक़्त एहसान चचा का पैर जो फिसला, तो फिर वो उठ ही नहीं पाए. अपना घर देखने की अधूरी इच्छा के साथ वहीं दम तोड़ दिया.
सवाली- इन्नलिल्लाही व इन्न इलैहि राजियून.........लेकिन दद्दू ऐसा भी क्या था जो एहसान चचा इतने सालों तक अपने गाँव ही नहीं आ पाए.
ख्याली- बाहर देश रहते थे बेटा.
सवाली- दद्दू. जो लोग बाहर देश रहते हैं, उनके पास तो बहुत पैसा होता है. तो टिकट की तो कोई समस्या नहीं रही होगी. जवानी में तो किसी के साथ के मोहताज़ भी नहीं रहे होंगे. खुद ही आ जाते.
ख्याली- आ तो जाते बेटा, लेकिन वीजा की दिक्कत थी.
सवाली- अरे? अपने ही देश में आने के लिए कौन सा वीजा. अरे अच्छा... अमरीका- कनाडा बस गए होंगे, और वहीं का पासपोर्ट ले लिए होगा. लेकिन अमरीका में बस गए हिन्दुस्तानियों को तो आसानी से भारत का वीजा मिल जाता है. ये कौन सी जगह है? कहाँ रहते थे एहसान चचा?
ख्याली- बेटा, तेरह साल की उम्र में अपने माँ- बाप और भाई- बहिनों के साथ एहसान चचा जिस शहर में जाकर बस गए थे, उसका नाम है कराँची. अब समझे????
सवाली- (गहरी साँस लेता है). समझ गया दद्दू. लेकिन ये लोग कब समझेंगे. वैसे देख लेना, एहसान अकरम चचा अगले जनम में यहीं पैदा होंगे. यहीं कहीं. लखीमपुर या लखनऊ में.
ख्याली- इस्लाम में पुनर्जन्म नहीं होता बेटा.
सवाली- लेकिन हमारे एहसान चचा का पुनर्जन्म होगा द्द्दू. बिलकुल होगा, और इस बार वो कहीं दूसरे शहर जाकर नहीं बसेंगे.
(सवाली बुरी तरह रो पड़ता है. उसे गले लगाकर ख्याली के भी आंसू बह निकलते हैं. बगल वाली पुरानी हवेली में पचासी साल के सरदार दिलबाग सिंह ने फिर से वही पुराना गाना चला दिया है, और सुनते- सुनते उदास हो गए हैं. वाजिद अली शाह लिख रहे है, और उनके सामने खड़े कुंदन लाल सहगल गा रहे हैं- बाबुल मोरा, नैहर छूटो ही जाए.)
‘होटल में गिरने से पाकिस्तानी नागरिक की मौत’- दैनिक जागरण, 14 मार्च 2015.

Tuesday, 3 March 2015

सवाली और ख्याली : मफलर बनाम गमछा

सवाली:  दद्दू. ये बताओ कि गमछा मफलर की शान में गुस्ताखी क्यों कर रहा है.
ख्याली : बेटा, झाडू वालों का घर असल में शीशे का बना है. मफलर शायद ये चाहता है कि घर की सफाई भी तीली वाले सख्त झाड़ू से की जाए. अब शीशे की सफाई तो झाडू से हो नहीं सकती न? इसके लिए तो गमछा ही चाहिए. जिससे अन्दर सब साफ़ रहे और बाहरवालों को भी सब साफ़- साफ दिखाई दे.

सवाली:  तो ये मफलर इतना डरा हुआ क्यों है. उसके पीछे तो सडसठ टोपियाँ है, चार पगड़ियाँ हैं. और भी बहुत कुछ है.
ख्याली : मामला डर का नहीं है बेटा. सर्वशक्तिमान मफलर को अदने से गमछे से क्या डर? वैसे हो सकता है कि मफलर को डर हो कि एक दिन गमछा कहीं मफलर को ही साफ़ न कर दे.

सवाली:  लेकिन जनता का भरोसा तो मफलर पर ही है न?
ख्याली : बिलकुल है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मफलर गमछे और टोपी को कुछ समझे ही नहीं. मफलर की शान में गमछे का भी कम योगदान नहीं है. दूसरा, ये गमछा मफलर से कहीं पुराना है. भरोसेमंद भी ज्यादा है. गरमी-सर्दी-बरसात, हर मौसम में काम आता है.

सवाली:  अगर ऐसा है फिर तो मफलर को गमछे का सम्मान करना चाहिए. और छोटी - मोटी गलती पर ध्यान नहीं देना चाहिए.
ख्याली : क्या बताएं बेटा, आजकल यही चल रहा है. सामने वाले कमल के घर में नहीं देखा? धोती बूढ़ी क्या हुई, नौलखिया सूट ने उसे पीछे वाले कमरे में पटक दिया.

सवाली:  ये बात तो है. लेकिन अपना मफलर तो.........
ख्याली : असल में अभी मफलर की बहार चल रही है. लड़के जिंदाबाद का नारा लगा ही रहे हैं. सरकार की बैठकें तो चल ही रही है. मंत्रालय में कैमरा भी नहीं चल रहा. अंग्रेज़ी बोलने वाले चिकने – चुपड़े लड़के प्रवक्ता बनके टी वी पे बोल ही ले रहे हैं. तो फिर गमछे को कौन पूछे. इन्टरनेट पे चन्दा मिल ही जा रहा है. तो फिर एक करोड़ का चन्दा देने वाले अंकल को क्यों पूछना? कोर्ट के केस लड़ने के लिए कई वकील मिल जायेंगे, फिर बार- बार सवाल पूछने वाले वकील साहब को क्यों झेलें. लोग समझ नहीं रहे हैं. सवाल पूछने का हक  सिर्फ मफलर को है. उससे प्रश्न कोई नहीं पूछ सकता.

सवाली:  अच्छा दद्दू, ये पलीद पाण्डेय कौन हैं?
ख्याली : कौन हैं, ये तो टी वी वाले ही जानें. कितनी बार तुझसे कहा- उलटा करके नाम मत बोला कर. पाण्डेय जी को को नहीं जानता? टी वी देखा कर. जनरल नॉलेज बढ़ेगी. कल कहीं राज्यसभा में चले गए तो?

सवाली:  और ये आशीष?
इसके आगे कुछ मत बोलना बे. आई एम अ खेतान फैन. वैसे भी इस झाडूघर के  आदाब ही कुछ अलग हैं. लोगों का आरोप हैं कि यहाँ बोलना तो छोड़, कोई मफलर की मर्जी के बिना गुनगुना भी नहीं सकता.

सवाली:  क्यों? हरदिलअज़ीज़ डिज़ाईनर सूट तो मंच पर गुनगुनाता भी है, और गाता भी. उसे तो कोई?मना नहीं करता.
ख्याली : अबे वो राग दरबारी में गाता है.

सवाली:  अच्छा हम तो समझ रहे थे कि डिज़ाईनर सूट राग देस में गाता है?
ख्याली : गाता है, देस में भी गाता है. रामलीला मैदान में झंडा लेकर देस में ही गाता है. चुनाव से पहले नट गया था तो  नट भैरव में गा रहा था. अब दरबारी में गा रहा है. मंच पे बसंत बहार में गाता है. क्या देस में गाने वाला दरबारी में नहीं गा सकता? अच्छा गायक तो वो है जो हर राग में बढ़िया गाए.

सवाली:  अच्छा दद्दू, ये कवि- सम्मेलन टाइप सस्ती बातें छोडो. ये बताओ कि ये कुरते पे चढ़े स्वेटर की क्या कहानी है? लोग तो ये भी कह रहे थे कि स्वेटर के पीछे जो कुर्ता है, उसकी जेब में बहुत माल भरा गया लोकसभा चुनाव में. तो क्या मफलर ये बात नहीं जानता?
ख्याली : बिलकुल जानता होगा. यू पी की हर टोपी जानती है. फिर मफलर क्यों नहीं जानेगा?

सवाली:  चलो दद्दू, एक काम करते हैं. मफलर बार-बार किसी भगवान की बात करता है. आज हम दोनों मफलर के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं.
ख्याली : ठीक है. मेरे पीछे – पीछे बोलो. भगवान, हमारे प्यारे मफलर को सद्बुद्धि दे. उसे पंखों, कुरते पर चढ़ी सुल्तानपुरी स्वेटरों और मंच वाले डिज़ाईनर कोट से दूर रख.  हे भगवान, मफलर को याद दिला कि पसीना पोंछने वाला गमछा अपनी पे उतर आये, तो गला भी घोंट सकता है. हे मफलर के ईश्वर, हमारी और गमछे की हर दुआ क़ुबूल फरमा.

सवाली:  आमीन.

(माहौल में अगरबत्तियों का धुआँ छा जाता है. सवाली और ख्याली उस धुएँ में खो जाते हैं.)