Friday, 27 February 2015

किस कोने में मरा है चूहा?

मेरे एक मित्र हैं. इन्होने फेसबुक पर एक चित्र लगाया, जिसमें लिखा था. आपको क्या होने पर गर्व है? चार विकल्प थे- नंबर एक- भारतीय, नंबर दो- हिन्दू, नंबर तीन- मुस्लिम और नंबर चार मनुष्य. शायद उन्हें उम्मीद रही होगी कि ज़्यादातर लोग इसका उत्तर भारतीय या मनुष्य ही देंगे. लेकिन तीन दिन के भीतर इस पोस्ट के जवाब में जो प्रतिक्रियाएं आयीं, उन्हें देखकर मेरा माथ भन्ना गया. शर्तिया आप का भी भन्ना जाएगा.

इससे पहले कि आगे बढ़ें, आपको बताते चलें कि मेरे ये मित्र एक ऐसे शहर से ताल्लुक रखते हैं, जहां पचास फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम है. साथ ही चूंकि ये खुद भी मुस्लिम हैं, इसलिए ज़ाहिर तौर पर इस पोस्ट पर ज़्यादातर मुस्लिम युवकों के कमेंट्स ही आये.

देखकर अच्छा नहीं लगा कि एक सोलंकी और एक मलिक साहब ने अपनी प्रतिक्रया में हिन्दू लिखा था. सोलंकी साहब तो खुद को रियल हिन्दू बता रहे थे. ऐसे ही कृष्णा साहब ने ये तो नहीं बताया कि वह खुद को सबसे पहले क्या मानते हैं, लेकिन उन्होंने ये ज़रूर ने कहा कि सच्चा हिन्दू किसी के धर्म की आलोचना नहीं कर सकता. हमारा हिन्दू धर्म हमें सभी धर्मों का सम्मान करने का उपदेश देता है’. इसका वक्तव्य का समापन उन्होंने हिन्दू धर्म की जय का नारा लगाते हुए दिया.

वैसे तसल्ली की बात ये थी कि कोचले साहब और कुमार साहब ने खुद को पहले मनुष्य माना. एक भाग्यवार साहब  दार्शनिक टाइप इंसान थे. उन्होंने ४ बार ४ लिखा, जिसका मतलब है- मनुष्य. इसके आगे वह लिखते हैं कि ये शरीर मिटटी का बना है, और मिट्टी में ही मिल जाता है. मुझे गर्व किस बात का? इस लिए हमारी ओर से सब को गुड मॉर्निंग.

एक शर्मा जी ने लिखा १-२ . इसका मतलब होता है- पहले भारतीय, फिर हिन्दू. दो पटेलों में से एक सबसे पहले भारतीय थे, जबकि दुसरे सबसे पहले मनुष्य. मैथिल, महाजन, इंगले, बरुरे, जायसवाल, कुशवाहा और महाजन सरनेम वाले लोग भी पहले भारतीय ही थे.

सुलेमान सरनेम वाली एक महिला का कहना था कि सबसे पहले हमें एक अच्छा इंसान होने पर फख्र करना चाहिए, बाकी बातें बाद में’. पढ़कर अच्छा लगा. इसी तरह नशीम और राइन सरनेम वाले दो पुरुषों और एजाज़ सरनेम वाली एक महिला ने सबसे पहले खुद को भारतीय माना. एक सादिक साहब ने पूरी वरीयता सूची ही लिख दी थी. वह पहले पहले भारतीय थे. फिर इंसान, और तब मुसलमान.

दो लोगों के नाम और सरनेम से मज़हब साफ़ नहीं हो रहा था.अब ये छोटू, राजू, गुड्डू, बबलू (और हमारे लखनऊ/अवध के मोलहे) तो मज़हब से ऊपर उठे हुए नाम हैं न. अच्छी बात थी कि ये दोनों ही खुद को पहले भारतीय मान रहे थे.

अब सुनिए दुखी करने वाली बात.

भारत में आकर इस्लाम भी जाति के कुप्रभाव से बचा नहीं रहा इसलिए पोस्ट पर कमेन्ट करने वाले मुस्लिमों में से कुल ११ लोगों के सरनेम खान थे. इनमें दो महिलायें भी शामिल थीं. 9 पुरुष खानों में से 7 तो साफ़ तौर पर पहले मुस्लिम थे. इनमें से एक ने तो मानो इस पोस्ट को चुनौती के तौर पर ले लिया था. उनका कहना था- एक नहीं हज़ार बार कहूंगा, मुसलमान’. इनमें से एक खान साहब ने पहले मुस्लिम लिखा , फिर सुधारते हुए थोडा डिप्लोमेटिक उत्तर दिया- ईमान वाला. एक महिला खान (खानम?) ने लिखा – ‘मुसलमान. यही तो हमारी पहचान है. वरना क्या फर्क है गैरों में और हम में’.

वैसे राहत देने वाली खबर मिली खान साहब नंबर १० और ११ से. १० नंबर का कहना था कि एक मुस्लिम ही अच्छा भारतीय हो सकता है. इसलिए मुझे एक इंडियन मुस्लिम होने पर गर्व है’. खान नंबर ११ ने लिखा कि ; ‘हमें मुसलमान होने पर फख्र है, इस लिए हम हिन्दुस्तानी भी हैं’.

इसी तरह दोनों शेख साहेबान पहले मुस्लिम ही थे. अहमद, अलीम, कासमी, अली, अहमद, रज़ा, मलिक भी सबसे पहले मुस्लिम ही थे.

नक्काश सरनेम वाले सज्जन ने ये पोस्ट डालने वाले हमारे मित्र पर तंज़ कसते हुए जताया कि इस पोस्ट को डालने की ज़रुरत नहीं थी. मुझे भी लगा कि वह सही कह रहे है. लेकिन फिर लगा ठीक ही है. इस बहाने चर्चा तो होगी कि क्यों इन 16 में से 3 हिन्दू और 25 में से 16- 17 मुसलमान ( प्रतिशत पे न जाइए, बात को समझिये) पहले इंसान या भारतीय क्यों नहीं हो पाए? कमरे में चूहा मर जाए तो रूम फ्रेशनर से बदबू कम नहीं होगी. चूहे को हटाना पडेगा. और इसके लिए ये पता होना ज़रूरी है कि चूहा है किस कोने में. सिर्फ भाई- भाई के नारे लगाने से मामला सुलझेगा नहीं. पता लगाना पडेगा कि लोग भाई- भाई क्यों नहीं हैं. इसके लिए चर्चा करना और कारणों को समझना ज़रूरी है.


अपना विश्लेषण फिर कभी लिखूंगा. फिलहाल आप अपनी राय दीजिये. लेकिन भाषा की मर्यादा को समझते हुए. 

सवाली और ख्याली : कहाँ गए राहुल भैया

(पुराने कांग्रेसी ख्याली भाई आज यूं भड़के हुए हैं, जैसे उन्हें किसी ने घर वापसी का प्रस्ताव दे दिया हो. बात करते करते अचानक वह भाषण की मुद्रा में आ जा रहे हैं)

सवाली- दद्दू, ये बताओ कि राहुल भैया कहाँ गए होंगे?
ख्याली- हमें क्या पता बे? अभी- अभी दिल्ली का एग्जाम दिए है. गर्मियों की छुट्टियों में गए होंगे नानी या मउसी के घर. बच्चा इम्तेहान में फेल हो गया तो क्या गरमी की छुट्टी में घूमने भी नहीं जाने दोगे? केंद्र में बहुमत मिल गया तो क्या बच्चों का घूमने- फिरने का अधिकार भी छीन लोगे? अरे लोकतंत्र है. अभी हिन्दू राष्ट्र नहीं बना है. साम्प्रदायिकता मुर्दाबाद. मोदी सरकार मुर्दाबाद. बिकाऊ मीडिया मुर्दाबाद.

सवाली- इसमें साम्प्रदायिकता की क्या बात है. वैसे, लोग तो बता रहे हैं कि ध्यान करने बैंकॉक गए हैं.
ख्याली- चुप कर दिग्विजय कहीं के. भारत वाले बैंकॉक जाकर ध्यान करते हैं या कुछ और करते हैं. ये राहुल जी को बदनाम करने की साजिश है. खाकी नेकर वालो, कान खोलकर सुन लो. हिन्दू राष्ट्र हमारी लाश पर बनेगा. मोदी सरकार मुर्दाबाद. बिकाऊ मीडिया मुर्दाबाद.

सवाली- तो क्या राहुल जी गंगाजी के किनारे- किनारे होकर हिमालय चले गए हैं?
ख्याली- तेरे मुँह में गोबर पड़े कमबख्त. राहुल जी हिमालय चले गए तो कांग्रेस अनाथ नहीं हो जायेगी? वैसे भी एक सेक्युलर नेता का हिमालय और गंगा से क्या मतलब? ये राहुल जी की छवि बिगड़ने की साजिश है. मोदी सरकार मुर्दाबाद. बिकाऊ मीडिया मुर्दाबाद.

सवाली- तब तो मेरे ख्याल से तो राहुल भैया दलितों के घर खाना खाने गए होंगे.
ख्याली- तुझे ख्याल कब से आने लगे बे. ख्याली तो मैं हूँ. तू सवाली है. चुपचाप सरदेसाई की तरह सवाल पूछ. रवीश की तरह राय मत दे. ( भावुक होकर) क्या दिन आ गए बेचारी माँ के. अगर सोनिया जी ने राहुल भैया की शादी करवा दी होती तो कम से कम एक और रोकने वाली तो होती. माँ की सुनता ही कौन है?

सवाली- भावुकता अच्छी नहीं है दद्दू. खुद को संभालो. अच्छा, ये बताओ. वो किसने कहा था कि देश जब पेन में होता है तो राहुल जी स्पेन में होते हैं
ख्याली- हाई स्कूल सपा की सरकार में पास किये हो क्या गधे? इन पंक्तियों के रचयिता राष्ट्रकवि कुमार विश्वास हैं. वैसे इतनी तुकबंदी हम भी कर सकते है. सुनो- जब देश संकट में होता है तो राहुल जी मस्कट में होते हैं. जब देश में रुत होती है तो राहुल जी बेरुत चले जाते हैं. लेकिन ये सब राहुल जी के खिलाफ साजिश है. नेकर वालों की सरकार, नहीं चलेगी, नहीं चलेगी.

सवाली- भैया, लोग कह रहे है कि राहुल भैया मम्मी से कांग्रेस अध्यक्ष बनने की जिद कर रहे हैं?
ख्याली- तो क्या तुम रोक लोगे आर एस एस वालो? तुम्हारे भगवान कृष्ण ने बचपन में अपनी माँ से जिद नहीं की थी. मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लेहों. कृष्ण करें तो ठीक. राहुल जी करें तो गलत. ये दोहरा मापदंड नहीं चलेगा. (भावुक हो जाते हैं) इन संघियों ने सुभाष बोस को नहीं रहने दिया. पटेल को नहीं बनने दिया. अब राहुल भैया को भी नहीं बनने दे रहे हैं.

सवाली- भैया, लोग कह रहे है कि राहुल भैया की जगह बहन प्रियंका को ले आना चाहिए.
ख्याली- हे भगवान. अब आर एस एस वाले ये भी करने लगे. अरे संघियों. तुम्हें भारत माता की कसम. अभी तक भाई भाई को लड़ाया, पाकिस्तान के दो हिस्से कर दिए. अब भाई बहन को मत लड़ाओ. (ख्याली भाई पगला जाते हैं) . नेकर वाले मुर्दाबाद. गंगा सफाई मुर्दाबाद. कायदे आज़म जिंदाबाद. खलीफा बगदादी जिंदाबाद.


(सवाली संबित पात्रा की तरह चौंक जाता है. और फिर 49 दिन की सरकार की तरह -फिर से वापस आने के लिए- भाग लेता है)

सवाली और ख्याली 1 : अन्ना की वापसी

सवाली- दद्दा ये बताओ, ये अन्ना किसके आदमी हैं.

 ख्याली- क्या मतलब? जनता के आदमी हैं. उसूलों के आदमी हैं. गरीबों के आदमी हैं. क्यों क्या हुआ?

सवाली- कुछ नहीं. फेसबुक पढ़ रहा था. मोदी जी के चेलों का कहना है कि अन्ना कांग्रेस के आदमी हैं.

ख्याली- तो होंगे. वैसे लगता तो नहीं हैं.

सवाली- लेकिन कांग्रेस वालों के पुराने बयान तो कहते है कि अन्ना आर एस एस के आदमी हैं?
ख्याली- हो सकता है. आर एस एस वाले तो उनके काम की मिसालें दिया करते थे. उन पर किताबे छापकर बांटते थे.

सवाली- लेकिन भाजपा वाले तो लिख रहे हैं कि बुड्ढे का दिमाग खराब हो गया है.
ख्याली- हो सकता है. दिमाग ख़राब न होता तो सतहत्तर साल की उम्र में धरने पे बैठते? भाजपा वाले तो उनके खिलाफ बोलेंगे ही.
सवाली- तो फिर कुछ आर एस एस वाले अन्ना के साथ क्यों हैं. आर एस एस और भाजपा तो भाई- भाई
हैं न.
ख्याली- नो कमेंट्स. वैसे रिश्ता भाई- भाई का नहीं. बाप- बेटे का है.
सवाली- अच्छा ये बताओ कि आम आदमी वाले अन्ना के साथ है?
ख्याली- बिलकुल साथ हैं बे. टी वी नहीं देखता? कल अरविन्द को पैर छूते नहीं देखा ?
सवाली- लेकिन अभी दिल्ली चुनाव के समय तो आम आदमी वाले लड़के फेसबुक पर लिख रहे थे कि
बुड्ढा पागल हो गया है.
ख्याली- पहले आम आदमी वाले लड़के अन्ना के खिलाफ थे.
सवाली- कनफ्यूज़न ये है कि फेसबुक पर उन्हीं लड़कों की टोपी लगी पुरानी तस्वीरें पड़ी है. जिन पर
लिखा है  मैं अन्ना हूँ.

ख्याली- डिलीट करना भूल गए होंगे. अच्छा, अब चुप कर. नहीं तो अदानी के जहाज़ में बिठाकर उड़ा 
दूंगा.
सवाली- अदानी के जहाज़ में या जिंदल के?
ख्याली- अब चुप भी हो जा. पचौरी कहीं के.

सवाली- कौन सा पचौरी? पंकज या आर के?

खलीफा बगदादी की दरियादिली

हमारे मोसुल संवाददाता के हवाले से खबर मिली है कि अगर 28 तारिख को यू ए ई की टीम ने मोहम्मद सामी जैसे काफिरों से भरी अल हिन्द की टीम को हरा दिया तो खलीफा बगदादी (CBUH) हर खिलाड़ी को एक - एक तेल का कुआँ, एक- एक बी एम डब्ल्यू और एक- एक रॉकेट लांचर का ईनाम अता फरमाएंगे.
साथ ही हर खिलाड़ी को नेपाल की एक हिन्दू, थाईलैंड की एक बौद्ध, गुजरात की एक वोहरा, मुम्बई की एक पारसी, कराची की एक अहमदिया, बरेली की एक सुन्नी, ईरान की एक शिया, ईराक की इक यजीदी, रोम की एक ईसाई, इसराइल की एक यहूदी, अमरीका की एक बहाई, पंजाब की एक सिख,अफ्रीका की एक प्रकृति पूजक, चीन की एक तो और स्वीडेन की एक नास्तिक - कुल पंद्रह - पंद्रह हसीनाएँ ईनाम में दी जायेंगी.
बहरीन के सुलतान जैसे एकाध को छोड़ कर यू ए ई के सभी शाहों और सुल्तानों ने खलीफा की इस दरियादिली का स्वागत किया है. उन्होंने यह भी कहा है कि खलीफा का हुक्म ही काफी है, उन्हें इनाम के इन्तेजामात के लिए परेशान होने की ज़रुरत नहीं. वह तो बस चुपचाप ईश्वर का काम करें. जबकि ईरान, ईराक और सीरिया की सरकारों और हिजबुल्लाह ने इस कदम की निंदा की है. अमरीका ने इस घटना पर चुटकी ली है. जबकि फ़्रांस ने कड़ी प्रतिक्रया दी है. जबकि भारत हमेशा की तरह फिलहाल स्थिति की समीक्षा कर रहा है. मज़े की बात ये है कि इस्राइल के प्रवक्ता द्वारा इस घटना की निंदा करने पर ईरान, ईराक और सीरिया की सरकारें नाराज़ हो गयी हैं.
मोसुल संवाददाता के अनुसार खलीफा ने मुहम्मद सामी के लिए सजा भी सुनाई है. इसके अनुसार सामी को पिच पर बाँध कर खड़ा करके उनपर एक हज़ार बाउंसर बरसाई जायेंगी. लेकिन अगर सामी मैच में नहीं खेलते हैं तो उन्हें रियायत देते हुए हेलमेट लगाने की छूट दी जायेगी. खबर ये भी है कि महान खलीफा बगदादी (CBUH) ने यू ए ई की टीम से खेलने वाले कृष्णा, पाटिल और मंजुला गुरुगे को यजीदी इस्लाम क़ुबूल करने की दावत दी है (terms and conditions applied).
अल्लाह खैर, ये क्या कर डाला हमने. अब तक तो खलीफा को पता चल चुका होगा कि मोसुल में हमारा संवाददाता भी है.

बहरहाल, इस तरह की रिपोर्टिंग के लिए हैदराबाद के एक बेहद खूबसूरत मगर खतरनाक मौलाना ने हमारे चैनल निंदा की है. उनके मुताबिक़ काफिर ताकतें इस बहाने मुसलमानों में फूट डाल रहीं हैं. उधर कुछ तिलकधारी नेता खुलकर हमारे समर्थन में आ गए हैं. गाय बचाओ-गोबर बचाओ आन्दोलन के नेता ने साफ़ कहा है कि अगर धर्म रक्षा के काम में लगे इस चैनल पर कोई हमला होता है तो मौलाना और उनकी बिरादरी की नस्लें उजाड़ दी जायेंगी और उन्हें हिन्द महासागर में डुबो दिया जाएगा.

देखते रहिये... 28 तक

वर्ल्ड कप की सबसे थकी हुई टीमों में से एक पाकिस्तान पर भारतीय क्रिकेट टीम की जीत पर प्रतिक्रियाएँ देखकर ऐसा लग रहा था मानो हम पाकिस्तान से कश्मीर का बचा हुआ हिस्सा छीन लाये हों. मीडिया दो हफ्ते से ऐसा माहौल बना रहा था, मानों यह मैच सियाचिन के बर्फीले युद्धक्षेत्र में खेला जा रहा हो. एक-एक चौके पर एक एक चौकी कब्ज़े में आ जायेगी. पटाखों वाले विज्ञापन दिखाए जा रहे थे, मानो राहुल जी की शादी होने को हो. हद्द है यार!!! अच्छा हुआ धोनी की टीम जीत गयी. वरना तीन दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा हो जाती. मीडिया और बाज़ार नो उल्लू बनाइंग कहते हुए हमें उल्लू बना रहा है, और हम मज़े से बने भी जा रहे हैं. वैसे भाजपा और आप के लिए तो अच्छा ही रहा. माहौल ही बदल गया. अब न इनसे कोई हार की वजहें पूछ रहा है, न उनसे आगे का एजेंडा. मैच के बाद के तीन दिन जीत के जश्न और टी वी फोड़ते पाकिस्तानियों ने ले लिए. बाकी के तीन दिन दक्षिण अफ्रीका से जीत की तैयारियों में गए. अब तीन दिन अफ्रीका विजय गाथ में निकलेंगे, और उसके बाद तो सबसे चैलेंजिंग मैच आ ही रहा है. दुनिया के सबसे अमीर इलाके की टीम से मैच है 28 तारीख को. देखते रहिये... आजतक..

कर्बला, हुसैन, और कुमार विश्वास (फेसबुक पर पुरानी पोस्ट)

मज़ाक बनना ही चाहिए इमाम हुसैन का. बिलकुल बनना चाहिए.

फरात नदी के किनारे कर्बला के मैदान पर आखिरकार घेर लिया गया इमाम और उनके काफिले को. तीन दिन से भूख और प्यास से तड़पते छः माह के बच्चे को गोद में उठाये दरिया ए फरात की बढ़ चले हुसैन. इस उम्मीद में कि दो घूँट पानी मिले तो बच्चे की साँसें लौट आयें. तभी एक ज़हर बुझा तीर आकर बच्चे की गर्दन पर लगता है. हुसैन की गोद में दम तोड़ देता है उनके जिगर का टुकड़ा. खुद उन्हीं का बेटा अली असग़र. ऐसे बाप का मज़ाक न बनाएं तो क्या करें. अपने उसूलों के लिए अपने बच्चे की बलि दे दी! हद्द है यार.

हुसैन के दस साल के बेटे अली अकबर के सीने में भाला घोंप दिया जाता है, इतनी ताक़त से कि भाले का फल ही अली अकबर की पसलियों में फंसकर टूट जाता है.फिर कहीं भतीजे कासिम को घोड़ों की टापों से कुचल कर मार दिया जाता है, कहीं भांजे ऑन मोहम्मद के खून से कर्बला की रेत भीगती रहती है. मगर कितना अड़ियल है ये इंसान. टस से मस नहीं. ज़रा सी जिद में भतीजे और भांजे की जान ले ली. अजीब चाचा- मामा था.

प्यासी भतीजी के लिए मश्क में पानी भरकर ला रहे अकेले अब्बास को घेर लेता है यजीद के सिपाहियों का एक बड़ा झुण्ड. इतने तीर लगते हैं हुसैन के सौतेले भाई अब्बास के शरीर पर कि उनका शरीर ही ज़मीन तक नहीं पहुँच पाता. तीरों का एक बिस्तर सा बन जाता है. अपने प्यारे भाई और उस छोटी सी टुकड़ी के सेनापति अब्बास का दम निकलते देख कर भी डिगते नहीं हुसैन. मज़ाक न बनाएं ऐसे भाई का?

कुछ भी तो नहीं करना था उन्हें. यजीद तो उनसे सिर्फ इतना चाहता था कि  पैगम्बर के नाती,  हज़रत अली के बेटे और अपने गिने-चुने अनुयायियों के नेता होने के नाते हुसैन यजीद की सत्ता को स्वीकार कर लें. बाकी सब कुछ जस का तस रहता. इमाम और उनके परिवार का वही रुतबा, वही शान.  मगर इतनी सी बात के लिए तैयार नहीं हुए हुसैन. ऎसी भी क्या जिद. काहे के उसूल. समूचे खानदान की बलि दे डाली. खुद अपनी जान कुर्बान कर दी. जानते थे कि परिवार के लगभग सभी मर्दों के शहीद हो जाने के बाद परिवार की महिलाओं और बच्चों पर क्या गुजरेगी. कितने ज़ुल्म ढाएगा अत्याचारी राजा यज़ीद.

मानवता और सत्य के संरक्षण के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार इमाम हुसैन की इस इम्प्रक्टिकल जिद के लिए बेशक मज़ाक बनना ही चाहिए उन का.

अच्छा ही किया आपने कुमार विश्वास. ठीक ही कहा आपने. क्या बेकार का नारा लगाते हैं लखनऊ वाले.... हाय हुसैन, हम न हुए. ठीक ही कहा आपने कि अगर होते तो क्या कर लेते ( कर लेते नहीं, आप पश्चिम के हैं, इसलिए आप ने कहा 'क्या कल्लेते'.

जब यजीद की सेना के तीरों से घायल होकर अपने घोड़े से गिर रहे थे हुसैन, तब बेशक उन्हें यह ख़याल रहा होगा कि लोग किस तरह उनके बलिदान और उनके आदर्शों का मज़ाक बनायेंगे. उन्हें पता रहा होगा शायद कि आप जैसा कोई महाकवि सिर्फ सस्ती तालियाँ बजवाने के लिए चौदह सौ साल और हज़ारों मील की दूरी से भी उनका मज़ाक उडाएगा.

कुमार जी, कुछ लोगों का यह भी मानना है कि हज़रत इमाम हुसैन भारत चले आना चाहते थे. कहा तो यह भी जाता है कि जिन लोगों ने सत्य के पक्ष में अडिग खड़े इमाम हुसैन के साथ अपनी जान न्यौछावर कर दी थी. उनमें अपने पंजाब की मोहियाल बिरादरी के कुछ हिन्दू भी शामिल थे. अगर ये बात सच है तो अगले कवि सम्मलेन में इन बेवक़ूफ़ शहीदों का भी मज़ाक उड़ाइयेगा. लेना एक न देना दो. बिलावजह मुसलमानों के आपसी झगडे में टांग अड़ाई, और जान से हाथ धो बैठे.

यजीद के लश्कर से चौतरफा घिरे इमाम ने सत्य की रक्षा के लिए फरात नदी के किनारे एक आत्मोत्सर्ग यज्ञ आयोजित किया था, आज से चौदह सौ साल पहले. उस यज्ञ में इन अनाम शहीदों ने हमारी समूची कौम का प्रतिनिधित्व किया. इस बेवकूफी के लिए कोई चुटकुला तो बनता है न.

आपने कहा 'होते तो क्या कल्लेते'. अपना तो पता नहीं कुमार भाई, लेकिन तब आप होते, तो शायद आप अमेठी की बजाय कर्बला की और कूच कर गए होते. धर्म की रक्षा के लिए. और अगर भारत आ जाते हुसैन, तो हम उन्हें राम और कृष्ण सा आदर देते. उन्होंने भी तो वही किया. धर्म संस्थापनार्थाय.

आपने आहत किया कुमार भाई. आस्था को आहत करते तो फिर भी चलता. आपने एक आदर्श का अपमान किया. आपकी ओर से मैं हज़रत इमाम हुसैन, कर्बला के तमाम शहीदों, इमाम और उनके आदर्शों के तमाम अनुयायियों ( जिनमें सोलह आना खरा हिन्दू होने के बावजूद मैं भी शामिल हूँ) से माफ़ी मांगता हूँ.

भाइयों, कुमार भाई को माफ़ करना. ये दरअसल जानते ही नही थे, कि ये क्या बोल गए.


एक जिज्ञासा! क्या कुछ ऐसा हो सकता है कि यह प्रतिक्रिया खुद कुमार विश्वास तक पहुँच जाए, और वे खुद माफी माँग में. क़ल्बे जव्वाद साहब से नहीं, कर्बला की धरती में बहे खून से- जो सच के हक में बहा और बेकार नहीं गया. कोशिश कीजिये..

शंकराचार्य स्वरूपानंद जी को खुला पत्र (फेसबुक पर पुरानी पोस्ट)

आदरणीय स्वरूपानंद जी सरस्वती,

क्षमा कीजियेगा पूज्यपाद, थोडा गलत बोल गए आप. साईं बाबा पर ऐसी टिप्पणी करने का आपका कोई अधिकार तो नहीं था. फिर भी आप शंकराचार्य है, और बुजुर्ग भी. सो मर्यादा तो रखनी ही पड़ेगी.
आप तो शायद थोडा पढ़े-लिखे भी है महाराज, और समसामयिक परिदृश्य पर भी आप की अच्छी नज़र रहती है. आप शायद नहीं जानते कि साईं बाबा की पूजा पूरे हिन्दू रीति- रिवाज़ के साथ होती है. संस्कृत के श्लोकों और मराठी के भजनों के साथ. उनकी भगवान् दत्तात्रय के अवतार के रूप में पूजा की जाती है. इसलिए साईं की पूजा हिंदुत्व के खिलाफ कोई साजिश नहीं है. और हो भी, तो बेफिक्र रहिये, हिंदुत्व औरंगजेब के समय में भी ख़त्म नहीं हुआ, और आज भी खतरे में नहीं है. वैसे ही जैसे कि इस्लाम न तो संजय गाँधी के समय में खतरे में था, न ही नरेन्द्र मोदी के समय में है.

और आप को कब से ये चिंताएं होने लगीं महाराज?

आपने कहा कि राष्ट्रपति तक शिर्डी जाते हैं दर्शन करने. शायद आप भूल गए महाराज कि एक ज़माना था कि प्रधानमंत्री और गवर्नर तक आपके दर्शनों को आते थे, और आपके पैर भी छूते थे. कई दशकों तक कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों से ज्यादा आपका रूतबा रहा है कांग्रेस के भीतर. जब जैसे राजनीति और सत्ता से जुड़े धर्मगुरु के इतने भक्त थे महाराज, तो फिर साईं जैसे फ़कीर देवपुरुष के तो होंगे ही.

ये ज़रूर है कि पहले जैसे वैष्णो देवी जाने का फैशन था, वैसे ही आजकल शिर्डी का ट्रेंड है. इस तरह के ट्रेंड्स से मुझे भी नफरत है.ये भी सच है कि साईं बाबा के नाम का दुरूपयोग हो रहा है. गुलशन कुमार के माता के जगरातों के बाद अब साईं बाबा की भी कानफोडू जागरण होने लगे हैं (मेरे घर के पास एक दूकान पर रखी साईं बाबा की मूर्ति चार- पांच साल में ही एक भव्य मंदिर में तब्दील हो गयी, और अब हर बृहस्पतिवार को वहाँ पर एक तरफ की सड़क लगभग जाम हो जाती है). शिर्डी की प्रबंधन समिति तिरुपति वालों की ही तरह बस पैसे पर नज़र रखती है. ये सब तो ठीक होना ही चाहिए. शिर्डी में भी, तिरुपति में भी, आपकी अपनी पीठ बद्रीनाथ में भी.

लेकिन साईं के बारे में ऐसा बयान देने से पहले उनके बारे में कुछ जान और पढ़ लेना चाहिए था आपको. उनके चमत्कारों के बारे में नहीं, बल्कि उनके जीवन और उनके संदेशों के बारे में.
चलिए मान लेते हैं. जानकारी का अभाव तो शंकराचार्य को भी हो सकता है. आखिर शंकराचार्य होने से कोई सर्वज्ञ थोड़े ही हो जाता है. हो सकता है कि आपने ये बयान किसी अच्छी नीयत से दिया हो. लेकिन आज आपको क्या सूझी ऐसा बयान देने की. आप अब से पहले कब धर्म की रक्षा के लिए सामने आये थे महाराज ?

आप वैचारिक रूप से कांग्रेस के निकट थे. सो आपसे ये अपेक्षा तो नहीं थी कि आप आपातकाल या हिन्दू धर्म के सबसे बड़े रक्षक सिखों के खिलाफ हुए 84 के दंगों के खिलाफ बोलते (वैसे आप गैर कांग्रेसी राजनीतिज्ञों के खिलाफ बोलते आये हैं). लेकिन पूज्यपाद, आप तो एक साथ दो- दो पीठ के शंकराचार्य थे. धर्म के भीतर की विसंगतियों पर तो बोल ही सकते थे आप.

आप बोल सकते थे उनके खिलाफ, जो पैसे लेकर महा मंडलेश्वर की पदवी नीलाम करते हैं, इनमें से कई तो महंत तक हैं बड़ी- बड़ी गद्दियों के. उनके खिलाफ क्यों नहीं बोले आप? बात अगर प्रमोद कृष्णन टाइप स्वयंभू, बाल्टी बाबा जैसे जगलर, चंद्रास्वामी जैसे दलाल या निर्मल बाबा जैसे ठगों की ही होती तो कोई बात नहीं थी, आपकी आँखों के सामने तो बाकायदा अखाड़ों के मठाधीश और महंत भी कई- कई करोड़ की गाड़ियों में घूमते हैं, दारू और ड्रग्स पीते हैं, महिला भक्तों को भावनात्मक रूप से फंसाकर उनका शोषण ही नहीं, बलात्कार तक करते हैं. खुद आप जिस ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य हैं, वहाँ का मुख्य पुजारी अभी कुछ महीने पहले एक महिला से बलात्कार की कोशिश करते पकड़ा गया था. इसके खिलाफ तो कभी नहीं बोले आप

तीर्थ स्थानों पर जिस प्रकार से पण्डे गुंडागर्दी करते हैं, मंदिरों में दर्शन की फीस लगती हैं, वी आई पी को पीछे के रास्ते से चुपचाप दर्शन करा दिए जाते हैं, धार्मिक स्थान हनीमून के अड्डे बन गए है, मंदिरों का व्यावसायीकरण किया जा रही है, मल्टीनेशनल कंपनियां धार्मिक आयोजनों को विज्ञापन का ज़रिया बना रही हैं. इन सब पर आपकी नज़र क्यों नहीं पड़ती महाराज.

आप तो न जाने कब से शंकराचार्य हैं. उम्र काफी हो जाने के बावजूद आपको याद होगा कि कैसे सत्तर के दशक में कैसे संतोषी देवी नाम की एक फिल्मी देवी अचानक देश के देवताओं की टॉप लिस्ट में आ गयी थी (जैसे आजकल साईं बाबा, तिरुपति और राजस्थान के दोनों बालाजीज़, और खाटू श्याम जी हैं. वैष्णो देवी रैंकिंग में थोडा पीछे चल रही हैं) और हिन्दी भारत के गाँव-गाँव और शहर- शहर में संतोषी माता के मंदिर बन गए थे. संतोषी माता के नाम से देश की आधी महिलायें शुक्रवार के व्रत रखने लगी थी. आजकल फिर से ऐसी ही एक काल्पनिक वैभव लक्ष्मी नामक देवी का व्रत फैशन में आ गया है. इन फ़िल्मी अशास्त्रीय देवियों की पूजा के खिलाफ तो आपका कोई बयान नहीं आया स्वामी जी.

आप तो दुनियादारी से बहुत जुड़े रहे हैं. क्या आप नहीं जानते अयोध्या के तमाम मठ और गढ़ियाँ बिहार से भागे हुए खूंखार अपराधियों से भरी हुई हैं. क्या आप नहीं जानते कि ज़मीनों और संपत्तियों को लेकर मठों- मंदिरों के भीतर क्या- क्या खेल होते हैं.

और सब छोडिये महाराज. आज तक देश के हज़ारों मंदिरों में तथाकथित शूद्रों का प्रवेश वर्जित है. आज भी मंदिरों के महंत, पुजारी और पण्डे शूद्रों के स्पर्श से अपवित्र हो जा रहे हैं. इसके लिए कुछ बोलिए. आज भी देवदासी जैसी घृणित प्रथा जीवित है मंदिरों में. उसके खिलाफ बोलिए ना ! आप जैसे धर्माचार्य क्या गैर ब्राह्मणों और स्त्रियों के पुरोहित बनने का रास्ता नहीं खोल सकते? क्या आप आश्रमों में निथाले बैठे लाखों साधुओं से ये अपील नहीं कर सकते कि वे विवेकानंद की तरह बाहर निकलें और समाज के बीच जाकर काम करें? एक बार कोशिश तो कीजिये. लेकिन आप को क्या? आप तो एयर कंडीशंड आश्रम में बैठकर बैठकर उन पांवों को पुजाते रहिये, जिनपर इंदिरा जी से लेकर न जाने कौन- कौन तक गिर चुके हैं.

माफ़ कीजियेगा, आपको चैलेंज कर रहा हूँ. मगर स्वामी जी, यही हमारा बड़प्पन है. मुझे 1990 में (जब आपके राजनैतिक विरोधियों ने गर्व से खुद को हिन्दू कहने का नारा लगाया था) भी खुद के हिन्दू होने पर गर्व था, और आज भी है. और मुझे यह गर्व इसलिए है क्योंकि एक हिन्दू होने के नाते मैं अपने शीर्ष धर्मगुरु को भी चैलेन्ज कर सकता हूँ, धर्मशास्त्रों को भी, धर्म को भी और यहाँ तक कि ईश्वर की सत्ता को भी. मैं ही नहीं कोई भी कर सकता है. और ऐसा करने वाले के खिलाफ न तो हम फतवा जारी करते है, न ही ब्लासफेमी क़ानून बनाते हैं.

हम विष्णु की पूजा करें तो भी हिन्दू होते हैं, शिव/ रूद्र की पूजा करें तो भी, और शक्ति की पूजा करें तो भी. हम प्रकृति पूजक हों, तो भी हिन्दू होते हैं, और लिंगपूजक हों तो भी. हम भजन गायें तो भी हिन्दू, मौन साधना करें तो भी हिन्दू, श्मशान साधना करें तो भी हिन्दू, और लिंग- उपासना करें तो भी हिन्दू. हमारा एक ही देवता संहार का देवता रूद्र भी है, और कल्याण का देवता शिव भी. हम अयोध्या के क्षत्रिय राजा राम को भी ईश्वर का अवतार मानते है, गोकुल के ग्वाले कृष्ण को भी और वनवासी हनुमान को भी.

और ये सब चलता ही रहेगा. हम महावीर को भी पूजेंगे, और नानक को भी. हमने तो सनातनियों के सबसे बड़े वैचारिक शत्रु बुद्ध को भी भगवान कहा. कहा ही नहीं, माना भी.

आप करते रहिये विरोध. हम तो पूजेंगे बराबरी, सादगी, समभाव और प्रेम के प्रतीक साईं को. हम ऐसे हर फ़कीर को पूजेंगे. हम पूजेंगे श्री रामकृष्ण को, स्वामी विवेकानंद को, श्री अरविन्द को, श्रीमाँ को. हम आपके मठों के कर्मकांडी पाखंड, अंधविश्वासों, और अनाचारों के खिलाफ समय - समय पर खड़े हुए हर नानक, कबीर और दयानंद को पूजेंगे. हम अगर सत्य के पक्ष में खड़े कृष्ण को पूजेंगे तो अन्याय के विरुद्ध खड़े हुए हुसैन को भी पूजेंगे. और ये सब करने के बाद भी हम सोलह आना हिन्दू रहेंगे. बल्कि अगर हमने ऐसा नहीं किया तो शायद हम हिन्दू न रह जाएँ.

झारखण्ड में वहाँ के क्रांतिकारी नायक बिरसा मुंडा को भगवान कहा जाता है. क्योंकि लोकनायक बिरसा ने अंग्रेजों के अत्याचारी शासन के खिलाफ संघर्ष किया, और अंग्रेजों की जेल में आपने प्राण त्याग दिए. हम तो करते रहेंगे पूजा बिरसा भगवान की. बाबासाहेब आंबेडकर के तमाम अनुयायी उनकी पूजा करते हैं. शायद जो ब्रज और द्वारका के लोगों ने कृष्ण में देखा, वही इन लोगों ने आंबेडकर में देखा हो. क्या आप रोक लेंगे इन्हें ऐसा करने से.

कुछ न बोलिए आप. अभी कुछ महीने पहले आपने एक पत्रकार को थप्पड़ ( आप का थप्पड़ तो आशीर्वाद और प्रसाद के रूप में लिया जाना चाहिए) मारा था. इससे शायद न्यूज़ नहीं बन पायी. बधाई हो. अब दो दिन तक आप न्यूज़ में रहेंगे महाराज.


मित्रो, ये पत्र शंकराचार्य जी के नाम है. वह तो शायद फेसबुक ये मेरा ब्लॉग पढेंगे नहीं. मगर शंकराचार्य के बहाने उन जैसे तमाम धर्मगुरुओं तक ये बातें पहुँच सकें तो अच्छा ही होगा.