आदरणीय स्वरूपानंद जी
सरस्वती,
क्षमा कीजियेगा
पूज्यपाद, थोडा
गलत बोल गए आप. साईं बाबा पर ऐसी टिप्पणी करने का आपका कोई अधिकार तो नहीं था. फिर
भी आप शंकराचार्य है, और
बुजुर्ग भी. सो मर्यादा तो रखनी ही पड़ेगी.
आप तो शायद थोडा
पढ़े-लिखे भी है महाराज, और
समसामयिक परिदृश्य पर भी आप की अच्छी नज़र रहती है. आप शायद नहीं जानते कि साईं
बाबा की पूजा पूरे हिन्दू रीति- रिवाज़ के साथ होती है. संस्कृत के श्लोकों और
मराठी के भजनों के साथ. उनकी भगवान् दत्तात्रय के अवतार के रूप में पूजा की जाती
है. इसलिए साईं की पूजा हिंदुत्व के खिलाफ कोई साजिश नहीं है. और हो भी, तो बेफिक्र रहिये, हिंदुत्व औरंगजेब के
समय में भी ख़त्म नहीं हुआ, और
आज भी खतरे में नहीं है. वैसे ही जैसे कि इस्लाम न तो संजय गाँधी के समय में खतरे
में था, न
ही नरेन्द्र मोदी के समय में है.
और आप को कब से ये
चिंताएं होने लगीं महाराज?
आपने कहा कि राष्ट्रपति
तक शिर्डी जाते हैं दर्शन करने. शायद आप भूल गए महाराज कि एक ज़माना था कि
प्रधानमंत्री और गवर्नर तक आपके दर्शनों को आते थे, और आपके पैर भी छूते
थे. कई दशकों तक कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों से ज्यादा आपका रूतबा रहा है कांग्रेस
के भीतर. जब जैसे राजनीति और सत्ता से जुड़े धर्मगुरु के इतने भक्त थे महाराज, तो फिर साईं जैसे फ़कीर
देवपुरुष के तो होंगे ही.
ये ज़रूर है कि पहले
जैसे वैष्णो देवी जाने का फैशन था, वैसे ही आजकल शिर्डी का
ट्रेंड है. इस तरह के ट्रेंड्स से मुझे भी नफरत है.ये भी सच है कि साईं बाबा के
नाम का दुरूपयोग हो रहा है. गुलशन कुमार के माता के जगरातों के बाद अब साईं बाबा
की भी कानफोडू जागरण होने लगे हैं (मेरे घर के पास एक दूकान पर रखी साईं बाबा की
मूर्ति चार- पांच साल में ही एक भव्य मंदिर में तब्दील हो गयी, और अब हर बृहस्पतिवार
को वहाँ पर एक तरफ की सड़क लगभग जाम हो जाती है). शिर्डी की प्रबंधन समिति तिरुपति
वालों की ही तरह बस पैसे पर नज़र रखती है. ये सब तो ठीक होना ही चाहिए. शिर्डी में
भी, तिरुपति
में भी, आपकी
अपनी पीठ बद्रीनाथ में भी.
लेकिन साईं के बारे में
ऐसा बयान देने से पहले उनके बारे में कुछ जान और पढ़ लेना चाहिए था आपको. उनके
चमत्कारों के बारे में नहीं, बल्कि उनके जीवन और
उनके संदेशों के बारे में.
चलिए मान लेते हैं.
जानकारी का अभाव तो शंकराचार्य को भी हो सकता है. आखिर शंकराचार्य होने से कोई
सर्वज्ञ थोड़े ही हो जाता है. हो सकता है कि आपने ये बयान किसी अच्छी नीयत से दिया
हो. लेकिन आज आपको क्या सूझी ऐसा बयान देने की. आप अब से पहले कब धर्म की रक्षा के
लिए सामने आये थे महाराज ?
आप वैचारिक रूप से
कांग्रेस के निकट थे. सो आपसे ये अपेक्षा तो नहीं थी कि आप आपातकाल या हिन्दू धर्म
के सबसे बड़े रक्षक सिखों के खिलाफ हुए 84 के दंगों के खिलाफ
बोलते (वैसे आप गैर कांग्रेसी राजनीतिज्ञों के खिलाफ बोलते आये हैं). लेकिन
पूज्यपाद, आप
तो एक साथ दो- दो पीठ के शंकराचार्य थे. धर्म के भीतर की विसंगतियों पर तो बोल ही
सकते थे आप.
आप बोल सकते थे उनके
खिलाफ, जो
पैसे लेकर महा मंडलेश्वर की पदवी नीलाम करते हैं, इनमें से कई तो महंत तक
हैं बड़ी- बड़ी गद्दियों के. उनके खिलाफ क्यों नहीं बोले आप? बात अगर प्रमोद कृष्णन
टाइप स्वयंभू, बाल्टी
बाबा जैसे जगलर, चंद्रास्वामी
जैसे दलाल या निर्मल बाबा जैसे ठगों की ही होती तो कोई बात नहीं थी, आपकी आँखों के सामने तो
बाकायदा अखाड़ों के मठाधीश और महंत भी कई- कई करोड़ की गाड़ियों में घूमते हैं, दारू और ड्रग्स पीते
हैं, महिला
भक्तों को भावनात्मक रूप से फंसाकर उनका शोषण ही नहीं, बलात्कार तक करते हैं.
खुद आप जिस ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य हैं, वहाँ का मुख्य पुजारी
अभी कुछ महीने पहले एक महिला से बलात्कार की कोशिश करते पकड़ा गया था. इसके खिलाफ
तो कभी नहीं बोले आप?
तीर्थ
स्थानों पर जिस प्रकार से पण्डे गुंडागर्दी करते हैं, मंदिरों में दर्शन की
फीस लगती हैं, वी
आई पी को पीछे के रास्ते से चुपचाप दर्शन करा दिए जाते हैं, धार्मिक स्थान हनीमून
के अड्डे बन गए है, मंदिरों
का व्यावसायीकरण किया जा रही है, मल्टीनेशनल कंपनियां धार्मिक
आयोजनों को विज्ञापन का ज़रिया बना रही हैं. इन सब पर आपकी नज़र क्यों नहीं पड़ती
महाराज.
आप तो न जाने कब से
शंकराचार्य हैं. उम्र काफी हो जाने के बावजूद आपको याद होगा कि कैसे सत्तर के दशक
में कैसे संतोषी देवी नाम की एक फिल्मी देवी अचानक देश के देवताओं की टॉप लिस्ट
में आ गयी थी (जैसे आजकल साईं बाबा, तिरुपति और राजस्थान के
दोनों बालाजीज़, और
खाटू श्याम जी हैं. वैष्णो देवी रैंकिंग में थोडा पीछे चल रही हैं) और हिन्दी भारत
के गाँव-गाँव और शहर- शहर में संतोषी माता के मंदिर बन गए थे. संतोषी माता के नाम
से देश की आधी महिलायें शुक्रवार के व्रत रखने लगी थी. आजकल फिर से ऐसी ही एक
काल्पनिक वैभव लक्ष्मी नामक देवी का व्रत फैशन में आ गया है. इन फ़िल्मी अशास्त्रीय
देवियों की पूजा के खिलाफ तो आपका कोई बयान नहीं आया स्वामी जी.
आप तो दुनियादारी से
बहुत जुड़े रहे हैं. क्या आप नहीं जानते अयोध्या के तमाम मठ और गढ़ियाँ बिहार से
भागे हुए खूंखार अपराधियों से भरी हुई हैं. क्या आप नहीं जानते कि ज़मीनों और
संपत्तियों को लेकर मठों- मंदिरों के भीतर क्या- क्या खेल होते हैं.
और सब छोडिये महाराज.
आज तक देश के हज़ारों मंदिरों में तथाकथित शूद्रों का प्रवेश वर्जित है. आज भी
मंदिरों के महंत, पुजारी
और पण्डे शूद्रों के स्पर्श से अपवित्र हो जा रहे हैं. इसके लिए कुछ बोलिए. आज भी
देवदासी जैसी घृणित प्रथा जीवित है मंदिरों में. उसके खिलाफ बोलिए ना ! आप जैसे
धर्माचार्य क्या गैर ब्राह्मणों और स्त्रियों के पुरोहित बनने का रास्ता नहीं खोल
सकते? क्या
आप आश्रमों में निथाले बैठे लाखों साधुओं से ये अपील नहीं कर सकते कि वे विवेकानंद
की तरह बाहर निकलें और समाज के बीच जाकर काम करें? एक बार कोशिश तो
कीजिये. लेकिन आप को क्या? आप
तो एयर कंडीशंड आश्रम में बैठकर बैठकर उन पांवों को पुजाते रहिये, जिनपर इंदिरा जी से
लेकर न जाने कौन- कौन तक गिर चुके हैं.
माफ़ कीजियेगा, आपको चैलेंज कर रहा
हूँ. मगर स्वामी जी, यही
हमारा बड़प्पन है. मुझे 1990 में (जब आपके राजनैतिक विरोधियों ने गर्व से खुद को हिन्दू कहने का
नारा लगाया था) भी खुद के हिन्दू होने पर गर्व था, और आज भी है. और मुझे
यह गर्व इसलिए है क्योंकि एक हिन्दू होने के नाते मैं अपने शीर्ष धर्मगुरु को भी
चैलेन्ज कर सकता हूँ, धर्मशास्त्रों
को भी, धर्म
को भी और यहाँ तक कि ईश्वर की सत्ता को भी. मैं ही नहीं कोई भी कर सकता है. और ऐसा
करने वाले के खिलाफ न तो हम फतवा जारी करते है, न ही ब्लासफेमी क़ानून
बनाते हैं.
हम विष्णु की पूजा करें
तो भी हिन्दू होते हैं, शिव/
रूद्र की पूजा करें तो भी, और
शक्ति की पूजा करें तो भी. हम प्रकृति पूजक हों, तो भी हिन्दू होते हैं, और लिंगपूजक हों तो भी.
हम भजन गायें तो भी हिन्दू, मौन
साधना करें तो भी हिन्दू, श्मशान
साधना करें तो भी हिन्दू, और
लिंग- उपासना करें तो भी हिन्दू. हमारा एक ही देवता संहार का देवता रूद्र भी है, और कल्याण का देवता शिव
भी. हम अयोध्या के क्षत्रिय राजा राम को भी ईश्वर का अवतार मानते है, गोकुल के ग्वाले कृष्ण
को भी और वनवासी हनुमान को भी.
और ये सब चलता ही
रहेगा. हम महावीर को भी पूजेंगे, और नानक को भी. हमने तो
सनातनियों के सबसे बड़े वैचारिक शत्रु बुद्ध को भी भगवान कहा. कहा ही नहीं, माना भी.
आप करते रहिये विरोध.
हम तो पूजेंगे बराबरी, सादगी, समभाव और प्रेम के
प्रतीक साईं को. हम ऐसे हर फ़कीर को पूजेंगे. हम पूजेंगे श्री रामकृष्ण को, स्वामी विवेकानंद को, श्री अरविन्द को, श्रीमाँ को. हम आपके
मठों के कर्मकांडी पाखंड, अंधविश्वासों, और अनाचारों के खिलाफ
समय - समय पर खड़े हुए हर नानक, कबीर और दयानंद को
पूजेंगे. हम अगर सत्य के पक्ष में खड़े कृष्ण को पूजेंगे तो अन्याय के विरुद्ध खड़े
हुए हुसैन को भी पूजेंगे. और ये सब करने के बाद भी हम सोलह आना हिन्दू रहेंगे.
बल्कि अगर हमने ऐसा नहीं किया तो शायद हम हिन्दू न रह जाएँ.
झारखण्ड में वहाँ के
क्रांतिकारी नायक बिरसा मुंडा को भगवान कहा जाता है. क्योंकि लोकनायक बिरसा ने
अंग्रेजों के अत्याचारी शासन के खिलाफ संघर्ष किया, और अंग्रेजों की जेल
में आपने प्राण त्याग दिए. हम तो करते रहेंगे पूजा बिरसा भगवान की. बाबासाहेब
आंबेडकर के तमाम अनुयायी उनकी पूजा करते हैं. शायद जो ब्रज और द्वारका के लोगों ने
कृष्ण में देखा, वही
इन लोगों ने आंबेडकर में देखा हो. क्या आप रोक लेंगे इन्हें ऐसा करने से.
कुछ न बोलिए आप. अभी
कुछ महीने पहले आपने एक पत्रकार को थप्पड़ ( आप का थप्पड़ तो आशीर्वाद और प्रसाद के
रूप में लिया जाना चाहिए) मारा था. इससे शायद न्यूज़ नहीं बन पायी. बधाई
हो. अब दो दिन तक आप न्यूज़ में रहेंगे महाराज.
मित्रो, ये पत्र शंकराचार्य जी
के नाम है. वह तो शायद फेसबुक ये मेरा ब्लॉग पढेंगे नहीं. मगर शंकराचार्य के बहाने
उन जैसे तमाम धर्मगुरुओं तक ये बातें पहुँच सकें तो अच्छा ही होगा.